दूलह: Difference between revisions
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*दूलह [[कालिदास त्रिवेदी]] के पौत्र और [[कवींद्र|उदयनाथ 'कवींद्र']] के पुत्र थे। | *[[रीति काल]] के कवि दूलह [[कालिदास त्रिवेदी]] के पौत्र और [[कवींद्र|उदयनाथ 'कवींद्र']] के पुत्र थे। | ||
*दूलह अपने पिता के सामने ही अच्छी कविता करने लगे थे। | *दूलह अपने पिता के सामने ही अच्छी कविता करने लगे थे। | ||
*यह कुछ समय तक अपने पिता के समसामयिक रहे। कवींद्र के रचे ग्रंथ संवत 1804 तक के मिले हैं। अत: इनका कविता काल संवत 1800 से लेकर संवत 1825 के आस पास तक माना जा सकता है। | *यह कुछ समय तक अपने पिता के समसामयिक रहे। कवींद्र के रचे ग्रंथ संवत 1804 तक के मिले हैं। अत: इनका कविता काल संवत 1800 से लेकर संवत 1825 के आस पास तक माना जा सकता है। | ||
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*'कविकुलकंठाभरण' [[अलंकार]] का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसमें लक्षण और उदाहरण एक ही पद में कहे गए हैं, पर कवित्त और सवैया के समान बड़े छंद लेने से अलंकार-स्वरूप और उदाहरण दोनों के सम्यक कथन के लिए पूरा अवकाश मिला है। 'भाषा भूषण' आदि दोहों में रचे हुए इस प्रकार के ग्रंथों से इसमें यही विशेषता है। इसके द्वारा सहज में अलंकारों का बोध हो सकता है। इसी से दूलह ने इसके संबंध में स्वयं कहा है - | *'कविकुलकंठाभरण' [[अलंकार]] का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसमें लक्षण और उदाहरण एक ही पद में कहे गए हैं, पर कवित्त और सवैया के समान बड़े छंद लेने से अलंकार-स्वरूप और उदाहरण दोनों के सम्यक कथन के लिए पूरा अवकाश मिला है। 'भाषा भूषण' आदि दोहों में रचे हुए इस प्रकार के ग्रंथों से इसमें यही विशेषता है। इसके द्वारा सहज में अलंकारों का बोध हो सकता है। इसी से दूलह ने इसके संबंध में स्वयं कहा है - | ||
<poem>जो या कंठाभरण को कंठ करै चित लाय। | <poem>जो या कंठाभरण को कंठ करै चित लाय। | ||
सभा मध्य सोभा लहै अलंकृती ठहराय | सभा मध्य सोभा लहै अलंकृती ठहराय</poem> | ||
*इनके 'कविकुल कंठाभरण' में केवल 85 पद्य हैं। फुटकर जो कवित्त मिलते हैं वे अधिक से अधिक 15 या 20 होंगे। अत: इनकी रचना बहुत थोड़ी है, पर उसी से यह बड़े अच्छे प्रतिभा सम्पन्न कवियों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हो गये हैं। [[देव[[, [[भिखारी दास]], [[मतिराम]] आदि के साथ दूलह का भी नाम लिया जाता है। | *इनके 'कविकुल कंठाभरण' में केवल 85 पद्य हैं। फुटकर जो कवित्त मिलते हैं वे अधिक से अधिक 15 या 20 होंगे। अत: इनकी रचना बहुत थोड़ी है, पर उसी से यह बड़े अच्छे प्रतिभा सम्पन्न कवियों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हो गये हैं। [[देव[[, [[भिखारी दास]], [[मतिराम]] आदि के साथ दूलह का भी नाम लिया जाता है। | ||
*इनकी सर्वप्रियता का कारण इनकी रचना की मधुर कल्पना, मार्मिकता और प्रौढ़ता है। इनके वचन [[अलंकार|अलंकारों]] के प्रमाण में भी सुनाए जाते हैं और सहृदय श्रोताओं के मनोरंजन के लिए भी। किसी कवि ने प्रसन्न होकर यहाँ तक कहा है - '''और बराती सकल कवि, दूलह दूलहराय'''। | *इनकी सर्वप्रियता का कारण इनकी रचना की मधुर कल्पना, मार्मिकता और प्रौढ़ता है। इनके वचन [[अलंकार|अलंकारों]] के प्रमाण में भी सुनाए जाते हैं और सहृदय श्रोताओं के मनोरंजन के लिए भी। किसी कवि ने प्रसन्न होकर यहाँ तक कहा है - '''और बराती सकल कवि, दूलह दूलहराय'''। | ||
माने सनमाने तेइ माने सनमाने सन, | <blockquote><poem>माने सनमाने तेइ माने सनमाने सन, | ||
माने सनमाने सनमान पाइयतु है। | माने सनमाने सनमान पाइयतु है। | ||
कहैं कवि दूलह अजाने अपमाने, | कहैं कवि दूलह अजाने अपमाने, | ||
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'दूसरो अधिक' आयो ऐसो गननन में। | 'दूसरो अधिक' आयो ऐसो गननन में। | ||
तीनों लोक तन में, अमान्यो ना गगन में। | तीनों लोक तन में, अमान्यो ना गगन में। | ||
बसैं ते संत मन में कितेक कहौ, मन में</poem> | बसैं ते संत मन में कितेक कहौ, मन में</poem></blockquote> | ||
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==सम्बंधित लेख== | ==सम्बंधित लेख== | ||
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Revision as of 09:55, 15 May 2011
- रीति काल के कवि दूलह कालिदास त्रिवेदी के पौत्र और उदयनाथ 'कवींद्र' के पुत्र थे।
- दूलह अपने पिता के सामने ही अच्छी कविता करने लगे थे।
- यह कुछ समय तक अपने पिता के समसामयिक रहे। कवींद्र के रचे ग्रंथ संवत 1804 तक के मिले हैं। अत: इनका कविता काल संवत 1800 से लेकर संवत 1825 के आस पास तक माना जा सकता है।
- इनका लिखा एक ही ग्रंथ 'कविकुल कंठाभरण' मिला है जिसमें निर्माणकाल नहीं दिया है। पर इनके फुटकर कवित्त और भी सुने जाते हैं।
- 'कविकुलकंठाभरण' अलंकार का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसमें लक्षण और उदाहरण एक ही पद में कहे गए हैं, पर कवित्त और सवैया के समान बड़े छंद लेने से अलंकार-स्वरूप और उदाहरण दोनों के सम्यक कथन के लिए पूरा अवकाश मिला है। 'भाषा भूषण' आदि दोहों में रचे हुए इस प्रकार के ग्रंथों से इसमें यही विशेषता है। इसके द्वारा सहज में अलंकारों का बोध हो सकता है। इसी से दूलह ने इसके संबंध में स्वयं कहा है -
जो या कंठाभरण को कंठ करै चित लाय।
सभा मध्य सोभा लहै अलंकृती ठहराय
- इनके 'कविकुल कंठाभरण' में केवल 85 पद्य हैं। फुटकर जो कवित्त मिलते हैं वे अधिक से अधिक 15 या 20 होंगे। अत: इनकी रचना बहुत थोड़ी है, पर उसी से यह बड़े अच्छे प्रतिभा सम्पन्न कवियों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हो गये हैं। [[देव[[, भिखारी दास, मतिराम आदि के साथ दूलह का भी नाम लिया जाता है।
- इनकी सर्वप्रियता का कारण इनकी रचना की मधुर कल्पना, मार्मिकता और प्रौढ़ता है। इनके वचन अलंकारों के प्रमाण में भी सुनाए जाते हैं और सहृदय श्रोताओं के मनोरंजन के लिए भी। किसी कवि ने प्रसन्न होकर यहाँ तक कहा है - और बराती सकल कवि, दूलह दूलहराय।
माने सनमाने तेइ माने सनमाने सन,
माने सनमाने सनमान पाइयतु है।
कहैं कवि दूलह अजाने अपमाने,
अपमान सों सदन तिनही को छाइयतु है
जानत हैं जेऊ तेऊ जात हैं विराने द्वार,
जानि बूझि भूले तिनको सुनाइयतु है।
कामबस परे कोऊ गहत गरूर तौ वा,
अपनी जरूर जाजरूर जाइयतु है
धारी जब बाँहीं तब करी तुम 'नाहीं',
पायँ दियौ पलिकाही, 'नाहीं नाहीं' कै सुहाई हौ।
बोलत मैं नाहीं, पट खोलत मैं नाहीं, कवि
दूलह उछाही लाख भाँतिन लहाई हौ
चुंबन में नाहीं परिरंभन में नाहीं, सब
आसन बिलासन में नाहीं ठीक ठाई हौ।
मेलि गलबाहीं, केलि कीन्हीं चितचाही, यह
'हाँ' ते भली 'नाहीं' सो कहाँ न सीखि आई हौ
उरज उरज धाँसे, बसे उर आड़े लसे,
बिन गुन माल गरे धारे छवि छाए हौ।
नैन कवि दूलह हैं राते, तुतराते बैन,
देखे सुने सुख के समूह सरसाए हौ।
जावक सों लाल भाल, पलकन पीकलीक,
प्यारे ब्रजचंद सुचि सूरज सुहाए हौ।
होत अरुनोद यहि कोद मति बसी आजु,
कौन घरबसी घर बसी करि आए हौ?
सारी की सरौट सब सारी में मिलाय दीन्हीं,
भूषन की जेब जैसे जेब जहियतु है।
कहै कवि दूलह छिपाए रदछद मुख,
नेह देखे सौतिन की देह दहियतु है
बाला चित्रसाला तें निकसि गुरुजन आगे,
कीन्हीं चतुराई सो लखाई लहियतु है।
सारिका पुकारै हम नाहीं, हम नाहीं
'एजू! राम राम कहौ', 'नाहीं नाहीं', कहियतुहै
फल विपरीत को जतन सों, 'विचित्र',
हरि ऊँचे होत वामन भे बलि के सदन में।
आधार बड़े तें बड़ो आधोय 'अधिक' जानौ,
चरन समायो नाहिं चौदहो भुवन में
आधोय अधिक तें आधार की अधिकताई,
'दूसरो अधिक' आयो ऐसो गननन में।
तीनों लोक तन में, अमान्यो ना गगन में।
बसैं ते संत मन में कितेक कहौ, मन में
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