बंसीधर: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
|||
Line 1: | Line 1: | ||
*बंसीधर [[ब्राह्मण]] | *[[रीति काल]] के कवि बंसीधर [[ब्राह्मण]] थे और [[अहमदाबाद]], [[गुजरात]] के रहने वाले थे। | ||
*बंसीधर ने [[दलपति राय]] के साथ मिलकर संवत 1792 में [[उदयपुर]] के महाराणा जगतसिंह के नाम पर 'अलंकार रत्नाकर' नामक ग्रंथ बनाया। इसका आधार महाराज जसवंत सिंह का 'भाषाभूषण' है। इसका 'भाषाभूषण' के साथ प्राय: वही संबंध है जो 'कुवलयानंद' का 'चंद्रालोक' के साथ। इस ग्रंथ में विशेषता यह है कि इसमें [[अलंकार|अलंकारों]] का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया गया है। इस कार्य के लिए गद्य व्यवहृत हुआ है। | *बंसीधर ने [[दलपति राय]] के साथ मिलकर संवत 1792 में [[उदयपुर]] के महाराणा जगतसिंह के नाम पर 'अलंकार रत्नाकर' नामक ग्रंथ बनाया। इसका आधार महाराज जसवंत सिंह का 'भाषाभूषण' है। इसका 'भाषाभूषण' के साथ प्राय: वही संबंध है जो 'कुवलयानंद' का 'चंद्रालोक' के साथ। इस ग्रंथ में विशेषता यह है कि इसमें [[अलंकार|अलंकारों]] का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया गया है। इस कार्य के लिए गद्य व्यवहृत हुआ है। | ||
*रीति काल के भीतर व्याख्या के लिए कभी कभी गद्य का उपयोग कुछ ग्रंथकारों की सम्यक निरूपण की उत्कंठा सूचित करता है। | *रीति काल के भीतर व्याख्या के लिए कभी कभी गद्य का उपयोग कुछ ग्रंथकारों की सम्यक निरूपण की उत्कंठा सूचित करता है। | ||
Line 7: | Line 6: | ||
*बंसीधर कवि भी अच्छे थे। | *बंसीधर कवि भी अच्छे थे। | ||
*पद्य रचना की निपुणता के अतिरिक्त इनमें भावुकता और बुद्धि वैभव दोनों हैं - | *पद्य रचना की निपुणता के अतिरिक्त इनमें भावुकता और बुद्धि वैभव दोनों हैं - | ||
<poem>अरुन हरौल नभ मंडल मुलुक पर | <blockquote><poem>अरुन हरौल नभ मंडल मुलुक पर | ||
चढयो अक्क चक्कवै कि तानि कै किरिनकोर। | चढयो अक्क चक्कवै कि तानि कै किरिनकोर। | ||
आवत ही साँवत नछत्रा जोय धाय धाय, | आवत ही साँवत नछत्रा जोय धाय धाय, | ||
Line 14: | Line 13: | ||
आमिल उलूक जाय गिरे कंदरन ओर। | आमिल उलूक जाय गिरे कंदरन ओर। | ||
दुंद देखि अरविंद बंदीखाने तें भगाने, | दुंद देखि अरविंद बंदीखाने तें भगाने, | ||
पायक पुलिंद वै मलिंद मकरंद चोर</poem> | पायक पुलिंद वै मलिंद मकरंद चोर</poem></blockquote> | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
Line 25: | Line 22: | ||
==सम्बंधित लेख== | ==सम्बंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category:रीति काल | [[Category:रीति काल]] | ||
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 10:02, 15 May 2011
- रीति काल के कवि बंसीधर ब्राह्मण थे और अहमदाबाद, गुजरात के रहने वाले थे।
- बंसीधर ने दलपति राय के साथ मिलकर संवत 1792 में उदयपुर के महाराणा जगतसिंह के नाम पर 'अलंकार रत्नाकर' नामक ग्रंथ बनाया। इसका आधार महाराज जसवंत सिंह का 'भाषाभूषण' है। इसका 'भाषाभूषण' के साथ प्राय: वही संबंध है जो 'कुवलयानंद' का 'चंद्रालोक' के साथ। इस ग्रंथ में विशेषता यह है कि इसमें अलंकारों का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया गया है। इस कार्य के लिए गद्य व्यवहृत हुआ है।
- रीति काल के भीतर व्याख्या के लिए कभी कभी गद्य का उपयोग कुछ ग्रंथकारों की सम्यक निरूपण की उत्कंठा सूचित करता है।
- दंडी आदि कई संस्कृत आचार्यों के उदाहरण भी लिए गए हैं।
- हिन्दी कवियों की लंबी नामावली ऐतिहासिक खोज में बहुत उपयोगी है।
- बंसीधर कवि भी अच्छे थे।
- पद्य रचना की निपुणता के अतिरिक्त इनमें भावुकता और बुद्धि वैभव दोनों हैं -
अरुन हरौल नभ मंडल मुलुक पर
चढयो अक्क चक्कवै कि तानि कै किरिनकोर।
आवत ही साँवत नछत्रा जोय धाय धाय,
घोर घमासान करि काम आए ठौर ठौर
ससहर सेत भयो, सटक्यो सहमि ससी,
आमिल उलूक जाय गिरे कंदरन ओर।
दुंद देखि अरविंद बंदीखाने तें भगाने,
पायक पुलिंद वै मलिंद मकरंद चोर
|
|
|
|
|