अखा भगत: Difference between revisions
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[[गुजराती भाषा]] के प्राचीन कवियों में अखा भगत का महत्वपूर्ण स्थान है। अखा भगत अपने समय के सर्वोत्तम प्रतिभा संपन्न कवि थे। अखा भगत का समय 1591 से 1656 ई. तक माना जाता है। वृत्ति की [[दृष्टि]] से वे [[सोना|सोने]] के आभूषण बनाया करते थे। अखा भगत [[अहमदाबाद]] के निवासी थे और बाद में वहीं की टकसाल में मुख्य अधिकारी हो गए थे। अखा भगत का गृहस्थ जीवन सुखकर नहीं था। संसार से मन के विरक्त होने पर घर द्वार छोड़कर ये तीर्थयात्रा के लिए निकले और वे सब कुछ छोड़कर गुरु की खोज करते हुए, तीर्थाटन के लिए [[काशी]] चले गए और तीन वर्षों तक वहाँ शंकर वेदांत के ग्रंथों का अध्ययन करते रहे। | |||
ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर अखा भगत पुन: अहमदाबाद आए। इन्होंने पंचीकरण, गुरु शिष्य संवाद, अनुभव बिंदु, चित्त विचार संवाद, आदि ग्रंथों की रचना की है। अखा भगत ने मिथ्याचार, दंभ, दुराग्रह, सामाजिक दुर्गुणों आदि पर भी कठोर प्रहार किया है। 53 वर्ष की उम्र में अखो ने काव्य रचना आरंभ की। उन्होंने अपनी रचनाओं में बहुत सशक्त [[भाषा]] का प्रयोग किया, जिसमें आत्मानुभूति के दर्शन होते हैं। अखा भगत ने पाखंडों की भर्त्सना की है और उस समय प्रचलित धार्मिक कुरीतियों पर व्यंग्यपूर्ण कटाक्ष किया है। उनके कुछ पद [[हिन्दी भाषा]] में भी प्राप्त होते हैं। | |||
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Revision as of 07:22, 12 June 2011
गुजराती भाषा के प्राचीन कवियों में अखा भगत का महत्वपूर्ण स्थान है। अखा भगत अपने समय के सर्वोत्तम प्रतिभा संपन्न कवि थे। अखा भगत का समय 1591 से 1656 ई. तक माना जाता है। वृत्ति की दृष्टि से वे सोने के आभूषण बनाया करते थे। अखा भगत अहमदाबाद के निवासी थे और बाद में वहीं की टकसाल में मुख्य अधिकारी हो गए थे। अखा भगत का गृहस्थ जीवन सुखकर नहीं था। संसार से मन के विरक्त होने पर घर द्वार छोड़कर ये तीर्थयात्रा के लिए निकले और वे सब कुछ छोड़कर गुरु की खोज करते हुए, तीर्थाटन के लिए काशी चले गए और तीन वर्षों तक वहाँ शंकर वेदांत के ग्रंथों का अध्ययन करते रहे।
ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर अखा भगत पुन: अहमदाबाद आए। इन्होंने पंचीकरण, गुरु शिष्य संवाद, अनुभव बिंदु, चित्त विचार संवाद, आदि ग्रंथों की रचना की है। अखा भगत ने मिथ्याचार, दंभ, दुराग्रह, सामाजिक दुर्गुणों आदि पर भी कठोर प्रहार किया है। 53 वर्ष की उम्र में अखो ने काव्य रचना आरंभ की। उन्होंने अपनी रचनाओं में बहुत सशक्त भाषा का प्रयोग किया, जिसमें आत्मानुभूति के दर्शन होते हैं। अखा भगत ने पाखंडों की भर्त्सना की है और उस समय प्रचलित धार्मिक कुरीतियों पर व्यंग्यपूर्ण कटाक्ष किया है। उनके कुछ पद हिन्दी भाषा में भी प्राप्त होते हैं।
कृतियाँ
अखो भगत के ग्रंथ इस प्रकार है-
- पंचीकरण
- गुरु शिष्य संवाद‘
- चित्त विचार संवाद
- अनुभव बिंदु
- अखो गीत
- 476 छप्पय
- 'अखो गीता' इनमें सर्वोत्तम ग्रंथ माना जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 10।
हिंदी विश्व कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, 71।