कबीर की साखियाँ -कबीर: Difference between revisions
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कस्तुरी कुँडली बसै, मृग | कस्तुरी कुँडली बसै, मृग ढूँढे बन माहिँ. | ||
ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ.. | ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ.. | ||
प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय. | प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय. | ||
राजा | राजा परजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय .. | ||
माला फेरत जुग | माला फेरत जुग गया, मिटा ना मन का फेर. | ||
कर का मन का छाड़ि | कर का मन का छाड़ि के मन का मनका फेर.. | ||
माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर. | माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर. | ||
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ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय. | ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय. | ||
औरन को | औरन को सीतल करे, आपहुँ सीतल होय.. | ||
लघुता ते प्रभुता मिले, प्रभुता ते प्रभु दूरी. | |||
चींटी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूरी.. | |||
निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय. | निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय. |
Revision as of 13:34, 5 September 2011
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कस्तुरी कुँडली बसै, मृग ढूँढे बन माहिँ. |
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