मीरां: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश" to "Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोशCategory:चरित कोश") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''मीरांबाई / मीराबाई'''<br /> | '''मीरांबाई / मीराबाई'''<br /> | ||
{{सूचना बक्सा साहित्यकार | |||
प्रसिद्ध कृष्ण-भक्त कवयित्री मीराबाई [[जोधपुर]] के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। इनकी जन्म-तिथि के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान् इनका जन्म 1430 ई. मानते हैं और कुछ 1498 ई.। मीरा का जीवन बड़े दु:ख में बीता। बाल्यावस्था में ही मां का देहांत हो गया। पितामह ने देखभाल की परंतु कुछ वर्ष बाद वे भी चल बसे। मीरांबाई कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं । उनके पिता का नाम रत्नसिंह | |चित्र=Meerabai-1.jpg | ||
|चित्र का नाम=मीरां | |||
मीरांबाई ने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की | |पूरा नाम=मीराबाई | ||
|अन्य नाम=मीरांबाई | |||
|जन्म=1498 | |||
|जन्म भूमि=मेरता, [[राजस्थान]] | |||
|मृत्यु=1547 | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|अविभावक=रत्नसिंह | |||
|पति/पत्नी=कुंवर भोजराज | |||
|संतान= | |||
|कर्म भूमि=[[वृन्दावन]] | |||
|कर्म-क्षेत्र= | |||
|मुख्य रचनाएँ=बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद | |||
|विषय=कृष्णभक्ति | |||
|भाषा=[[ब्रजभाषा]] | |||
|विद्यालय= | |||
|शिक्षा= | |||
|पुरस्कार-उपाधि= | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी= | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
प्रसिद्ध कृष्ण-भक्त कवयित्री मीराबाई [[जोधपुर]] के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। इनकी जन्म-तिथि के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान् इनका जन्म 1430 ई. मानते हैं और कुछ 1498 ई.। मीरा का जीवन बड़े दु:ख में बीता। बाल्यावस्था में ही मां का देहांत हो गया। पितामह ने देखभाल की परंतु कुछ वर्ष बाद वे भी चल बसे। मीरांबाई कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं । उनके पिता का नाम रत्नसिंह था। उनके पति कुंवर भोजराज [[उदयपुर]] के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहांत हो गया। [[Image:Mirabai-1.jpg|[[मीराबाई का मन्दिर वृन्दावन|मीराबाई का मन्दिर]], [[वृन्दावन]]<br /> Mirabai Temple, Vrindavan|thumb|left]] पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरां इसके लिये तैयार नहीं हुई। [[मेवाड़]] का शासन भोजराज के सौतेले भाई के हाथ में आया, जिसने हर प्रकार से मीरा को सताया। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं। मीरा बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों के विपरीत थीं व परिस्थितियों ने उन्हें और भी अंतर्मुखी बना दिया। उन्होंने [[चित्तौड़]] त्याग दिया और संत [[रैदास]] की शिष्या बन गयीं। वे बहुत दिनों तक [[वृन्दावन]] में रहीं और फिर 1543 ई. के आसपास वे [[द्वारिका]] चली गई और जीवन के अंत तक वहीं रही। उनका निधन 1563 और 1573 ई. के बीच माना जाता है। जहाँ संवत 1547 ईस्वी में उनका देहांत हुआ । इनके जन्म को लेकर कई मतभेद रहे हैं। | |||
मीरांबाई ने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं । मीरा के कृष्ण-भक्ति के पद बहुत लोकप्रिय हैं। [[हिन्दी]] के साथ-साथ [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] और [[गुजराती भाषा|गुजराती]] में भी इनकी रचनाएं पाई जाती हैं। हिन्दी के भक्त-कवियों में मीरा का स्थान बहुत ऊंचा है। | |||
== रचित ग्रंथ == | == रचित ग्रंथ == | ||
मीरांबाई ने चार ग्रंथों की रचना की– | |||
#बरसी का मायरा | #बरसी का मायरा | ||
Line 13: | Line 43: | ||
#राग गोविंद | #राग गोविंद | ||
#राग सोरठ के पद | #राग सोरठ के पद | ||
{| | {| | ||
| | | | ||
इनकी एक रचना इस प्रकार हैं- | |||
<poem>पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो । | |||
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो ॥ | |||
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो । | |||
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो ॥ | |||
सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो । | |||
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो ॥</poem> | |||
| | |||
[[Image:Mirabai-2.jpg|[[केशी घाट वृन्दावन|केशी घाट]], [[वृन्दावन]]<br /> Keshi Ghat, Vrindavan|thumb|250px]] | |||
|} | |} | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति |
Revision as of 11:36, 6 September 2011
मीरांबाई / मीराबाई
मीरां
| |
पूरा नाम | मीराबाई |
अन्य नाम | मीरांबाई |
जन्म | 1498 |
जन्म भूमि | मेरता, राजस्थान |
मृत्यु | 1547 |
पति/पत्नी | कुंवर भोजराज |
कर्म भूमि | वृन्दावन |
मुख्य रचनाएँ | बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद |
विषय | कृष्णभक्ति |
भाषा | ब्रजभाषा |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
प्रसिद्ध कृष्ण-भक्त कवयित्री मीराबाई जोधपुर के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। इनकी जन्म-तिथि के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान् इनका जन्म 1430 ई. मानते हैं और कुछ 1498 ई.। मीरा का जीवन बड़े दु:ख में बीता। बाल्यावस्था में ही मां का देहांत हो गया। पितामह ने देखभाल की परंतु कुछ वर्ष बाद वे भी चल बसे। मीरांबाई कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं । उनके पिता का नाम रत्नसिंह था। उनके पति कुंवर भोजराज उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहांत हो गया।

Mirabai Temple, Vrindavan
पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरां इसके लिये तैयार नहीं हुई। मेवाड़ का शासन भोजराज के सौतेले भाई के हाथ में आया, जिसने हर प्रकार से मीरा को सताया। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं। मीरा बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों के विपरीत थीं व परिस्थितियों ने उन्हें और भी अंतर्मुखी बना दिया। उन्होंने चित्तौड़ त्याग दिया और संत रैदास की शिष्या बन गयीं। वे बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहीं और फिर 1543 ई. के आसपास वे द्वारिका चली गई और जीवन के अंत तक वहीं रही। उनका निधन 1563 और 1573 ई. के बीच माना जाता है। जहाँ संवत 1547 ईस्वी में उनका देहांत हुआ । इनके जन्म को लेकर कई मतभेद रहे हैं।
मीरांबाई ने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं । मीरा के कृष्ण-भक्ति के पद बहुत लोकप्रिय हैं। हिन्दी के साथ-साथ राजस्थानी और गुजराती में भी इनकी रचनाएं पाई जाती हैं। हिन्दी के भक्त-कवियों में मीरा का स्थान बहुत ऊंचा है।
रचित ग्रंथ
मीरांबाई ने चार ग्रंथों की रचना की–
- बरसी का मायरा
- गीत गोविंद टीका
- राग गोविंद
- राग सोरठ के पद
इनकी एक रचना इस प्रकार हैं- पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो । |
![]() Keshi Ghat, Vrindavan |
|
|
|
|
|