केसरि से बरन सुबरन -बिहारी लाल: Difference between revisions
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केसरि से बरन सुबरन बरन | केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ। | ||
बरनीं न जाइ अवरन बै गई॥ | |||
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं। | |||
उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई॥ | |||
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव। | |||
चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई॥ | |||
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ | |||
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय | लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय | ||
जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई॥ | |||
Revision as of 07:14, 8 September 2011
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केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ। |
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