अक्षमालिकोपनिषद: Difference between revisions

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Revision as of 13:42, 13 October 2011

  • अक्षरों की माला जो 'अ' वर्ण से प्रारम्भ होकर 'क्ष' वर्ण पर समाप्त होती है, उसे 'अक्षमाला' कहा जाता है। यह उपनिषद ऋग्वेद से सम्बन्धित है। इसमें प्रजापति ब्रह्मा और कुमार कार्तिकेय (गुह) के प्रश्नोत्तर को गूंथा गया है।
  • इसमें सर्वप्रथम 'अक्षमाला' के विषय में जिज्ञासा की गयी है कि यह क्या है, इसके कितने लक्षण हैं, कितने भेद है, कितने सूत्र हैं, इसे किस प्रकार गूंथा जाता है तथा इसके अधिष्ठाता देवता कौन हैं?
  • इन सभी प्रश्नों का उत्तर इस उपनिषद में दिया गया है। साथ ही फलश्रुति का विवेचन भी किया गया है। प्रश्नोत्तर प्रारम्भ करने से पहले ऋषि शान्तिपाठ करते हैं और परमात्मा से त्रिविध तापों की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • प्रारम्भ में प्रजापति ब्रह्मा भगवान गुह (कार्तिकेय) से प्रश्न करते हैं-'हे भगवन! आप कृपा करके अक्षविधि बताने की कृपा करें कि इसका लक्षण क्या हैं? इसके भेद, सूत्र, गूंथने का प्रकार, अक्षरों का महत्त्व और फल का विवेचन करें।'

अक्षमाला क्या है?

  • तब भगवान गुह उत्तर देते हैं-'हे ब्राह्मण! यह अक्षमाला, प्रवाल (मूंगा), मोती, स्फटिक, शंख, चांदी स्वर्ण, चन्दन, पुत्रजीविका, कमल एवं रुद्राक्ष द्वारा बनायी जाती है। इसे 'अ' से 'क्ष' तक के अक्षरों से युक्त करके विधिपूर्वक धारण किया जाता है। इसमें स्वर्ण, चांदी और तांबे से निर्तित तीन सूत्र होते हैं। मनकों के विवर (छेद) में सामने की ओर स्वर्ण, दाहिने भाग में चांदी तथा बाएं भाग में तांबा लगाया जाता है। इन मनकों के मुख से मुख को और पृष्ठ भाग से पृष्ठ भाग को जोड़ना चाहिए।'
  • इनके भीतर का सूत्र 'ब्रह्म' है। दाहिने भाग में 'शिव' है और बायें भाग में 'विष्णु' है। मुख 'सरस्वती' है और पृष्ठभाग 'गायत्री' है। छिद्र 'विद्या' है, गांठ 'प्रकृति' है, स्वर सात्विक होने के कारण शुभ्र-श्वेत हैं और जो मनकों का स्पर्श है, वह सात्विक और तामसिक भावों का मिश्रित स्वरूप है तथा इनके अतिरिक्त सभी कुछ राजसी वृत्तियों का कारण है।

इस उपनिषद में आगे बताया गया है कि शुद्ध मन से स्नानादि करके मन को पंचामृत में धोकर, मन को स्पर्श करके मृत्यु को जीतने वाले सर्वरक्षक और सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान करना चाहिए। परमेश्वर का ध्यान करते हुए एक-एक मनके को छोड़कर अगले मनके पर बढ़ते जाना चाहिए। माला पूर्ण होने पर पृथ्वी के समस्त देवताओं को प्रणाम करना चाहिए।

  • तदुपरान्त इस लोक की समस्त चौंसठ कलाओं को नमस्कार करें और उनकी शक्तियों का आह्वान करें। ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र का बार-बार वन्दन करें। समस्त शैव, वैष्णव और शाक्त मतावलम्बियों को नमस्कार करें और अन्त में ईश्वर से कहें कि इस अक्षमालिका में जितने भी मनके हैं, प्रभु आप उनके द्वारा अपने सभी उपासकों को सुख-समृद्धि प्रदान करें। इन मनकों को इसी क्रम में बढ़ाकर इनकी संख्या एक सौ आठ करनी चाहिए। मेरू में पूर्वाक्त की भांति 'क्ष' अक्षर ही रहेगा। इस प्रकार मनकों को एक सूत्र में पिरोकर माला तैयार करें।
  • अक्षमालिका की स्तुति करने के पश्चात उसे उठाकर व प्रदक्षिणा करके पुन: हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-'हे भगवती मातृशक्ति! तुम सभी को वश में करने वाली हो। हम तुम्हें बार-बार नमन करते हैं। हे अक्षमाले! तुम सभी की गति को स्तम्भित करने वाली हो, तुम मृत्युंजय-स्वरूपिणी हो, तुम सभी लोकों की रक्षक हो, समस्त विश्व की प्राणशक्ति हो, तुम समस्त प्रकृति में विद्यमान हो, तुम सम्पूर्ण शक्तियों को देने वाली हो, हम तुम्हें बार-बार नमस्कार करते हैं।'
  • इस उपनिषद का प्रात: काल के समय में पाठ करने वाला रात्रि में किये गये पाप कृत्यों से मुक्त हो जाता है। सायंकाल में पाठ करने वाला दिन-भर में किये पापों से मुक्त हो जाता है। जो दोनों समय पाठ करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।



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