राधोपनिषद: Difference between revisions

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Revision as of 13:45, 13 October 2011

  • ऋग्वेदीय परम्परा के इस उपनिषद में सनकादि ऋषियों ने ब्रह्माजी से 'परम शक्ति' के विषय में प्रश्न किया है। ब्रह्मा जी ने वसुदेव कृष्ण को सर्वप्रथम देवता स्वीकार करके उनकी प्रिय शक्ति श्रीराधा को सर्वश्रेष्ठ शक्ति कहा है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आराधित होने के कारण उनका नाम 'राधिका' पड़ा। इस उपनिषद में उसी राधा की महिमामयी शक्तियों को उल्लेख है। उसके चिन्तन-मनन से मोक्ष-प्राप्ति की बात कही गयी है।
  • सनकादि ऋषियों द्वारा पूछ जाने पर ब्रह्मा जी उन्हें बताते हैं कि वृन्दावन अधीश्वर श्री कृष्ण ही एकमात्र सर्वेश्वर हैं। वे समस्त जगत के आधार हैं। वे प्रकृति से परे और नित्य हैं। उस सर्वेश्वर श्री कृष्ण की आह्लादिनी, सन्धिनी, ज्ञान इच्छा, क्रिया आदि अनेक शक्तियां हैं। उनमें आह्लादिनी सबसे प्रमुख है। वह श्री कृष्ण की अंतरंगभूता 'श्री राधा' के नाम से जानी जाती हैं। श्री राधा जी की कृपा जिस पर होती हैं, उसे सहज ही परम धाम प्राप्त हो जाता है। श्री राधा जी को जाने बिना श्री कृष्ण की उपासना करना, महामूढ़ता का परिचय देना है।

श्रीराधाजी के 28 नाम

श्री राधा जी के जिन 28 नामों से उनका गुणगान किया जाता है वे इस प्रकार हैं-

  1. राधा,
  2. रासेश्वरी,
  3. रम्या,
  4. कृष्णमत्राधिदेवता,
  5. सर्वाद्या,
  6. सर्ववन्द्या,
  7. वृन्दावनविहारिणी,
  8. वृन्दाराधा,
  9. रमा,
  10. अशेषगोपीमण्डलपूजिता,
  11. सत्या,
  12. सत्यपरा,
  13. सत्यभामा,
  14. श्रीकृष्णवल्लभा,
  15. वृषभानुसुता,
  16. गोपी,
  17. मूल प्रकृति,
  18. ईश्वरी,
  19. गान्धर्वा,
  20. राधिका,
  21. रम्या,
  22. रुक्मिणी,
  23. परमेश्वरी,
  24. परात्परतरा,
  25. पूर्णा,
  26. पूर्णचन्द्रविमानना,
  27. भुक्ति-मुक्तिप्रदा और
  28. भवव्याधि-विनाशिनी।

यहाँ 'रम्या' नाम दो बार प्रयुक्त हुआ है। ब्रह्माजी का कहना है कि राधा के इन मनोहारिणी स्वरूप की स्तुति वेदों ने भी गायी है। जो उनके इन नामों से स्तुति करता है, वह जीवन मुक्त हो जाता है।

  • यह शक्ति जगत की कारणभूता सत, रज, तम के रूप में बहिरंग होने के कारण जड़ कही जाती है। अविद्या के रूप में जीव को बन्धन में डालने वाली 'माया' कही गयी है। इसलिए इस शक्ति को भगवान की क्रिया शक्ति होने के कारण 'लीलाशक्ति' के नाम से पुकारा जाता है।
  • इस उपनिषद का पाठ करने वाले श्रीकृष्ण और श्रीराधा के परम प्रिय हो जाते हैं और पुण्य के भागीदार बनते हैं।
  • वर्तमान कतिपय विद्वान 'राधा' का अर्थ 'कृषि' से भी लगाते हैं, किन्तु यह उपनिषद का विषय नहीं है।


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