शमशेर बहादुर सिंह: Difference between revisions
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शमशेर बहादुर सिंह | शमशेर बहादुर सिंह (जन्म 13 जनवरी, 1911 [[देहरादून]] - मृत्यु- 12 मई 1993 [[अहमदाबाद]]) आधुनिक हिंदी कविता के प्रगतिशील कवि हैं। ये [[हिंदी]] तथा [[उर्दू]] के विद्वान हैं। प्रयोगवाद और नई कविता के कवियों की प्रथम पंक्ति में इनका स्थान है। इनकी शैली अंग्रेज़ी कवि ''एजरा पाउण्ड'' से प्रभावित है। शमशेर बहादुर सिंह 'दूसरा सप्तक' (1951) के कवि हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने कविताओं के समान ही चित्रों में भी प्रयोग किये हैं। आधुनिक कविता में '[[अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन|अज्ञेय']] और शमशेर का कृतित्व दो भिन्न दिशाओं का परिचायक है- 'अज्ञेय' की कविता में वस्तु और रूपाकार दोनों के बीच संतुलन स्थापित रखने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है, शमशेर में शिल्प-कौशल के प्रति अतिरिक्त जागरूकता है। इस दृष्टि से शमशेर और 'अज्ञेय' क्रमशः दो आधुनिक [[अंग्रेज़]] कवियों '''एजरा पाउण्ड''' और '''इलियट''' के अधिक निकट हैं। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में शिल्प को प्राधान्य देने का श्रेय एजरा पाउण्ड को प्राप्त है। वस्तु की अपेक्षा रूपविधान के प्रति उनमें अधिक सजगता दृष्टिगोचर होती है। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में काव्य-शैली के नये प्रयोग एजरा पाउण्ड से प्रारम्भ होते हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने अपने वक्तव्य में एजरा पाउण्ड के प्रभाव को मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है- '''टेकनीक में एजरा पाउण्ड शायद मेरा सबसे बड़ा आदर्श बन गया।''' | ||
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शमशेर बहादुर सिंह का जन्म [[देहरादून]] में 13 | शमशेर बहादुर सिंह का जन्म [[देहरादून]] में [[13 जनवरी]], 1911 को हुआ। आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई और हाईस्कूल-इंटर की परीक्षा गोंडा से दी। बी.ए. [[इलाहाबाद]] से किया, किन्ही कारणों से एम.ए. फाइनल न कर सके। 1935-36 में उकील बंधुओं से पेंटिंग कला सीखी। 'रूपाभ', 'कहानी', 'नया साहित्य', 'माया', 'नया पथ', 'मनोहर कहानियां' आदि में संपादन सहयोग। [[उर्दू]]-[[हिन्दी]] कोश प्रोजेक्ट में संपादक रहे और विक्रम विश्वविद्यालय के 'प्रेमचंद सृजनपीठ' के अध्यक्ष रहे। '''दूसरा तार सप्तक''' के कवि हैं। | ||
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शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है। शमशेर बहादुर सिंह में मुक्त साहचर्य और असम्बद्धताजन्य दुरूहता के तत्त्व साफ नज़र आते हैं। उनकी अभिव्यक्ति में अधूरापन परिलक्षित होता है। शमशेर की कविता में उलझनभरी संवेदनशीलता अधिक है। उनमें शब्द-मोह, शब्द-खिलवाड़ के प्रति अधिक जागरूकता है और शब्द- योजना के माध्यम से संगीत-ध्वनि उत्पन्न करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती हैं। | शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है। शमशेर बहादुर सिंह में मुक्त साहचर्य और असम्बद्धताजन्य दुरूहता के तत्त्व साफ नज़र आते हैं। उनकी अभिव्यक्ति में अधूरापन परिलक्षित होता है। शमशेर की कविता में उलझनभरी संवेदनशीलता अधिक है। उनमें शब्द-मोह, शब्द-खिलवाड़ के प्रति अधिक जागरूकता है और शब्द- योजना के माध्यम से संगीत-ध्वनि उत्पन्न करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती हैं। | ||
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शमशेर बहादुर सिंह (जन्म 13 जनवरी, 1911 देहरादून - मृत्यु- 12 मई 1993 अहमदाबाद) आधुनिक हिंदी कविता के प्रगतिशील कवि हैं। ये हिंदी तथा उर्दू के विद्वान हैं। प्रयोगवाद और नई कविता के कवियों की प्रथम पंक्ति में इनका स्थान है। इनकी शैली अंग्रेज़ी कवि एजरा पाउण्ड से प्रभावित है। शमशेर बहादुर सिंह 'दूसरा सप्तक' (1951) के कवि हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने कविताओं के समान ही चित्रों में भी प्रयोग किये हैं। आधुनिक कविता में 'अज्ञेय' और शमशेर का कृतित्व दो भिन्न दिशाओं का परिचायक है- 'अज्ञेय' की कविता में वस्तु और रूपाकार दोनों के बीच संतुलन स्थापित रखने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है, शमशेर में शिल्प-कौशल के प्रति अतिरिक्त जागरूकता है। इस दृष्टि से शमशेर और 'अज्ञेय' क्रमशः दो आधुनिक अंग्रेज़ कवियों एजरा पाउण्ड और इलियट के अधिक निकट हैं। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में शिल्प को प्राधान्य देने का श्रेय एजरा पाउण्ड को प्राप्त है। वस्तु की अपेक्षा रूपविधान के प्रति उनमें अधिक सजगता दृष्टिगोचर होती है। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में काव्य-शैली के नये प्रयोग एजरा पाउण्ड से प्रारम्भ होते हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने अपने वक्तव्य में एजरा पाउण्ड के प्रभाव को मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है- टेकनीक में एजरा पाउण्ड शायद मेरा सबसे बड़ा आदर्श बन गया।
परिचय
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म देहरादून में 13 जनवरी, 1911 को हुआ। आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई और हाईस्कूल-इंटर की परीक्षा गोंडा से दी। बी.ए. इलाहाबाद से किया, किन्ही कारणों से एम.ए. फाइनल न कर सके। 1935-36 में उकील बंधुओं से पेंटिंग कला सीखी। 'रूपाभ', 'कहानी', 'नया साहित्य', 'माया', 'नया पथ', 'मनोहर कहानियां' आदि में संपादन सहयोग। उर्दू-हिन्दी कोश प्रोजेक्ट में संपादक रहे और विक्रम विश्वविद्यालय के 'प्रेमचंद सृजनपीठ' के अध्यक्ष रहे। दूसरा तार सप्तक के कवि हैं।
काव्य शैली
शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है। शमशेर बहादुर सिंह में मुक्त साहचर्य और असम्बद्धताजन्य दुरूहता के तत्त्व साफ नज़र आते हैं। उनकी अभिव्यक्ति में अधूरापन परिलक्षित होता है। शमशेर की कविता में उलझनभरी संवेदनशीलता अधिक है। उनमें शब्द-मोह, शब्द-खिलवाड़ के प्रति अधिक जागरूकता है और शब्द- योजना के माध्यम से संगीत-ध्वनि उत्पन्न करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती हैं।
- आधुनिक काव्य-बोध
शमशेर की कविताएँ आधुनिक काव्य-बोध के अधिक निकट हें, जहाँ पाठक तथा श्रोता के सहयोग की स्थिति को स्वीकार किया जाता है। उनका बिम्बविधान एकदम जकड़ा हुआ 'रेडीमेड' नहीं है। वह 'सामाजिक' के आस्वादन को पूरी छूट देता है। इस दृष्टि से उनमें अमूर्तन की प्रवृत्ति अपने काफ़ी शुद्ध रूप में दिखाई देती है। उर्दू की गज़ल से प्रभावित होने पर भी उन्होंने काव्य-शिल्प के नवीनतम रूपों को अपनाया है। प्रयोगवाद और नयी कविता के पुरस्कर्ताओं में वे अग्रणी हैं। उनकी रचनाप्रकृति हिन्दी में अप्रतिम है और अनेक सम्भावनाओं से युक्त है। हिन्दी के नये कवियों में उनका नाम प्रथम पांक्तोय है। 'अज्ञेय' के साथ शमशेर ने हिन्दी-कविताओं में रचना-पद्धति की नयी दिशाओं को उद्धाटित किया है और छायावादोत्तर काव्य को एक गति प्रदान की है।
रचनाएँ
- काव्य-कृतियां-
- 'कुछ कविताएं' (1956)
- 'कुछ और कविताएं' (1961)
- 'शमशेर बहादुर सिंह की कविताएं' (1972)
- 'इतने पास अपने' (1980)
- 'उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष' (1980)
- 'चुका भी हूं नहीं मैं' (1981)
- 'बात बोलेगी' (1981)
- 'काल तुझसे होड़ है मेरी' (1988)
- 'शमशेर की ग़ज़लें'।
- गद्य-
- 'दोआब' निबंध- संग्रह (1948)
- 'प्लाट का मोर्चा' कहानियां व स्केच (1952)
- 'शमशेर की डायरी।'
- अनुवाद-
- सरशार के उर्दू उपन्यास 'कामिनी'
- 'हुशू'
- 'पी कहां।'
- एज़ाज़ हुसैन द्वारा लिखित उर्दू साहित्य का इतिहास ।
- 'षडयंत्र' (सोवियत संघ-विरोधी गतिविधियों का इतिहास)
- 'वान्दावासिलवास्का' (रूसी) के उपन्यास 'पृथ्वी और आकाश'
- 'आश्चर्य लोक में एलिस'।
- यात्रा-
सोवियत संघ- 1938 में।
सम्मान और पुरस्कार
शमशेर बहादुर सिंह को देर से ही सही, बडे-बडे पुरस्कार भी मिले- साहित्य अकादमी (1977), मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार (1987), कबीर सम्मान (1989) आदि।
निधन
शमशेर बहादुर सिंह ने 12 मई, 1993 को दुनिया से अलविदा कहा। डॉ. रंजना अरगड़े के अनुसार "जब उन्हें हार्ट अटैक आया तो अस्पताल में लगभग 72 घंटे से भी कम रहे। वह बहुत पीड़ा का समय तो नहीं था। लेकिन उन्हें शायद अंदाज़ा हो गया था कि अब जाने का समय आ गया है। मैं उनसे पूछ रही थी कि वे क्या सुनना चाहेंगे ग़ालिब या कुछ और लेकिन वे इनकार में सिर हिलाते रहे।" वे याद करती हैं, "आख़िर में शमशेर ने गायत्री मंत्र सुनने की इच्छा जताई। उज्जैन में जब वे थे तो संस्कृत की छूटी हुई कड़ी वहीं हाथ आ गई थी। मैं गायत्री मंत्र बोल रही थी और वे साथ में बोलते जा रहे थे। मंत्र बोलते -बोलते जब वे चुप हो गए तो मैं जान गई थी कि अब वे नहीं हैं।"[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सरल-सहज व्यक्तित्व वाला एक बड़ा कवि (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) बी.बी.सी. हिन्दी। अभिगमन तिथि: 31 अक्टूबर, 2011।
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 590। सहायक ग्रंथ- 'शमशेर' संपादक मलयज