खुला आसमान -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला: Difference between revisions
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बहुत दिनों बाद खुला आसमान! | बहुत दिनों बाद खुला आसमान! | ||
निकली है धूप, खुश हुआ जहान! | निकली है धूप, खुश हुआ जहान! | ||
दिखी दिशाएँ, झलके पेड़, | |||
चरने को चले ढोर | चरने को चले ढोर - गाय - भैंस - भेड़, | ||
खेलने लगे लड़के छेड़ - छेड़ - | |||
लड़कियाँ घरों को कर भासमान! | |||
लोग गाँव-गाँव को चले, | |||
कोई बाज़ार, कोई बरगद के पेड़ के तले | कोई बाज़ार, कोई बरगद के पेड़ के तले | ||
जाँघिया - लँगोटा ले, सँभले, | |||
तगड़े - तगड़े सीधे नौजवान! | |||
पनघट में बड़ी भीड़ हो रही, | |||
नहीं | नहीं ख़्याल आज कि भीगेगी चुनरी, | ||
बातें करती हैं वे सब खड़ी, | |||
चलते हैं नयनों के सधे बाण! | |||
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Revision as of 08:47, 24 December 2011
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बहुत दिनों बाद खुला आसमान! |
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