प्रपात के प्रति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला: Difference between revisions

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अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात !
अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात !
मचलते हुए निकल आते हो;
मचलते हुए निकल आते हो;
उज्जवल! घन-वन-अंधकार के साथ
उज्ज्वल! घन-वन-अंधकार के साथ
खेलते हो क्यों? क्या पाते हो ?
खेलते हो क्यों? क्या पाते हो ?
अंधकार पर इतना प्यार,
अंधकार पर इतना प्यार,

Revision as of 14:07, 6 March 2012

प्रपात के प्रति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896
जन्म स्थान मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात !
मचलते हुए निकल आते हो;
उज्ज्वल! घन-वन-अंधकार के साथ
खेलते हो क्यों? क्या पाते हो ?
अंधकार पर इतना प्यार,
क्या जाने यह बालक का अविचार
बुद्ध का या कि साम्य-व्यवहार !
तुम्हारा करता है गतिरोध
पिता का कोई दूत अबोध-
किसी पत्थर से टकराते हो
फिरकर ज़रा ठहर जाते हो;
उसे जब लेते हो पहचान-
समझ जाते हो उस जड़ का सारा अज्ञान,
फूट पड़ती है ओंठों पर तब मृदु मुस्कान;
बस अजान की ओर इशारा करके चल देते हो,
भर जाते हो उसके अन्तर में तुम अपनी तान ।




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