निरंजन धन तुम्हरो दरबार -कबीर: Difference between revisions
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अज्ञानी को परम ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।। | अज्ञानी को परम ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।। | ||
साँच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार । | साँच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार । | ||
कहत कबीर | कहत कबीर फ़कीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।। | ||
निरंजन धन तुम्हरो दरबार । | निरंजन धन तुम्हरो दरबार । | ||
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Latest revision as of 10:41, 17 May 2013
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निरंजन धन तुम्हरो दरबार । |
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