कप दानव: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''कप दानव''' महाभारत के उल्लेखानुसार वेदों के...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''कप दानव''' [[महाभारत]] के उल्लेखानुसार [[वेद|वेदों]] के ज्ञाता और विद्वान थे। इन दानवों ने स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया था। [[ब्रह्मा]] के कहने पर [[देवता|देवताओं]] ने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की शरण ली। तब ब्राह्मणों ने कप दानवों को पृथ्वी पर लाकर उनका वध किया।
'''कप दानव''' [[महाभारत]] के उल्लेखानुसार [[वेद|वेदों]] के ज्ञाता और विद्वान थे। इन दानवों ने स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया था। [[ब्रह्मा]] के कहने पर [[देवता|देवताओं]] ने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की शरण ली। तब ब्राह्मणों ने कप दानवों को पृथ्वी पर लाकर उनका वध किया।


महाभारत अनुशासन पर्व<ref>अध्याय 197, श्लोक 01-21</ref> के अनुसार, जब [[इन्‍द्र]] सहित सम्‍पूर्ण [[देवता]] मद के मुख में पड़ गये, उसी समय [[च्यवन]] ने उनके अधिकार की सारी भूमि हर ली थी। अपने दोनों लोकों का अपहरण हुआ जान वे देवता बहुत दु:खी हो गये और शोक से आतुर हो [[ब्रह्मा|महात्‍मा ब्रह्मा जी]] की शरण में गये। देवता बोले- "लोकपूजित प्रभो! जिस समय हम मद के मुख में पड़ गये थे, उस समय च्‍यवन ने हमारी भूमि हर ली और कप नामक दानवों ने स्‍वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।" ब्रह्मा जी ने कहा- "इन्‍द्र सहित देवताओं! तुम लोग शीघ्र ही [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की शरण में जाओ। उन्‍हें प्रसन्‍न कर लेने पर तुम लोग पहले की भांति दोनों लोक प्राप्‍त कर लोगे।" तब देवता लोग ब्राह्मणों की शरण में गये।
महाभारत अनुशासन पर्व<ref>अध्याय 197, श्लोक 01-21</ref> के अनुसार, जब [[इन्द्र]] सहित सम्‍पूर्ण [[देवता]] मद के मुख में पड़ गये, उसी समय [[च्यवन]] ने उनके अधिकार की सारी भूमि हर ली थी। अपने दोनों लोकों का अपहरण हुआ जान वे देवता बहुत दु:खी हो गये और शोक से आतुर हो [[ब्रह्मा|महात्‍मा ब्रह्मा जी]] की शरण में गये। देवता बोले- "लोकपूजित प्रभो! जिस समय हम मद के मुख में पड़ गये थे, उस समय च्‍यवन ने हमारी भूमि हर ली और कप नामक दानवों ने स्‍वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।" ब्रह्मा जी ने कहा- "इन्‍द्र सहित देवताओं! तुम लोग शीघ्र ही [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की शरण में जाओ। उन्‍हें प्रसन्‍न कर लेने पर तुम लोग पहले की भांति दोनों लोक प्राप्‍त कर लोगे।" तब देवता लोग ब्राह्मणों की शरण में गये।


ब्राह्मणों ने पूछा- "हम किनको जीतें?" उनके इस तरह पूछने पर देवताओं ने ब्राह्मणों से कहा- "आप लोग कप नामक दानवों को परास्‍त कीजिये"। तब ब्राह्मणों ने कहा- "हम उन दानवों को पृथ्‍वी पर लाकर परास्‍त करेंगे।" तदनन्‍तर ब्राह्मणों ने कप विनाशक कर्म आरम्‍भ किया। इसका समाचार सुनकर कपों ने ब्राह्मणों के पास अपना धनी नामक दूत भेजा, उसने उन ब्राह्मणों से कपों का संदेश इस प्रकार कहा- "ब्राह्मणों! समस्‍त कप नामक दानव आप लोगों के ही समान हैं। फिर उनके विरुद्ध यहाँ क्‍या हो रहा है? सभी कप वेदों के ज्ञाता और विद्वान हैं। सब-के-सब [[यज्ञ|यज्ञों]] का अनुष्‍ठान करते हैं। सभी सत्‍य प्रतिज्ञ हैं और सब-के-सब महर्षियों के तुल्‍य हैं। श्री उनके यहाँ रमण करती हैं और वे श्री को धारण करते हैं। वे परनायी स्त्रियों से समागम नहीं करते। मांस को व्‍यर्थ समझकर उसे कभी नहीं खाते हैं। प्रज्‍वलित अग्नि में आहुति देते और गुरुजनों की आज्ञा में स्थित रहते हैं। वे सभी अपने मन को संयम में रखते हैं। बालकों को उनका भाग बाँट देते हैं। निकट आकर धीरे-धीरे चलते हैं। रजस्‍वला स्‍त्री का कभी सेवन नहीं करते। शुभकर्म करते हैं और स्‍वर्ग लोक में जाते हैं। गर्भवती स्‍त्री और वृद्ध आदि के भोजन करने से पहले भोजन नहीं करते हैं। पूर्वाह्न में जुआ नहीं खेलते और दिन में नींद नहीं लेते हैं। इनसे तथा अन्‍य बहुत से गुणों द्वारा संयुक्‍त हुए कप नामक दानवों को आप लोग क्‍यों पराजित करना चाहते हैं? इस अवांछनीय कार्य से निवृत्त होइये, क्‍योंकि निवृत्त होने से ही आप लोगों को सुख मिलेगा।"<ref>[[महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 157 श्लोक 1-16]]</ref>
ब्राह्मणों ने पूछा- "हम किनको जीतें?" उनके इस तरह पूछने पर देवताओं ने ब्राह्मणों से कहा- "आप लोग कप नामक दानवों को परास्‍त कीजिये"। तब ब्राह्मणों ने कहा- "हम उन दानवों को पृथ्‍वी पर लाकर परास्‍त करेंगे।" तदनन्‍तर ब्राह्मणों ने कप विनाशक कर्म आरम्‍भ किया। इसका समाचार सुनकर कपों ने ब्राह्मणों के पास अपना धनी नामक दूत भेजा, उसने उन ब्राह्मणों से कपों का संदेश इस प्रकार कहा- "ब्राह्मणों! समस्‍त कप नामक दानव आप लोगों के ही समान हैं। फिर उनके विरुद्ध यहाँ क्‍या हो रहा है? सभी कप वेदों के ज्ञाता और विद्वान हैं। सब-के-सब [[यज्ञ|यज्ञों]] का अनुष्‍ठान करते हैं। सभी सत्‍य प्रतिज्ञ हैं और सब-के-सब महर्षियों के तुल्‍य हैं। श्री उनके यहाँ रमण करती हैं और वे श्री को धारण करते हैं। वे परनायी स्त्रियों से समागम नहीं करते। मांस को व्‍यर्थ समझकर उसे कभी नहीं खाते हैं। प्रज्‍वलित अग्नि में आहुति देते और गुरुजनों की आज्ञा में स्थित रहते हैं। वे सभी अपने मन को संयम में रखते हैं। बालकों को उनका भाग बाँट देते हैं। निकट आकर धीरे-धीरे चलते हैं। रजस्‍वला स्‍त्री का कभी सेवन नहीं करते। शुभकर्म करते हैं और स्‍वर्ग लोक में जाते हैं। गर्भवती स्‍त्री और वृद्ध आदि के भोजन करने से पहले भोजन नहीं करते हैं। पूर्वाह्न में जुआ नहीं खेलते और दिन में नींद नहीं लेते हैं। इनसे तथा अन्‍य बहुत से गुणों द्वारा संयुक्‍त हुए कप नामक दानवों को आप लोग क्‍यों पराजित करना चाहते हैं? इस अवांछनीय कार्य से निवृत्त होइये, क्‍योंकि निवृत्त होने से ही आप लोगों को सुख मिलेगा।"<ref>[[महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 157 श्लोक 1-16]]</ref>

Revision as of 07:11, 17 April 2017

कप दानव महाभारत के उल्लेखानुसार वेदों के ज्ञाता और विद्वान थे। इन दानवों ने स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया था। ब्रह्मा के कहने पर देवताओं ने ब्राह्मणों की शरण ली। तब ब्राह्मणों ने कप दानवों को पृथ्वी पर लाकर उनका वध किया।

महाभारत अनुशासन पर्व[1] के अनुसार, जब इन्द्र सहित सम्‍पूर्ण देवता मद के मुख में पड़ गये, उसी समय च्यवन ने उनके अधिकार की सारी भूमि हर ली थी। अपने दोनों लोकों का अपहरण हुआ जान वे देवता बहुत दु:खी हो गये और शोक से आतुर हो महात्‍मा ब्रह्मा जी की शरण में गये। देवता बोले- "लोकपूजित प्रभो! जिस समय हम मद के मुख में पड़ गये थे, उस समय च्‍यवन ने हमारी भूमि हर ली और कप नामक दानवों ने स्‍वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।" ब्रह्मा जी ने कहा- "इन्‍द्र सहित देवताओं! तुम लोग शीघ्र ही ब्राह्मणों की शरण में जाओ। उन्‍हें प्रसन्‍न कर लेने पर तुम लोग पहले की भांति दोनों लोक प्राप्‍त कर लोगे।" तब देवता लोग ब्राह्मणों की शरण में गये।

ब्राह्मणों ने पूछा- "हम किनको जीतें?" उनके इस तरह पूछने पर देवताओं ने ब्राह्मणों से कहा- "आप लोग कप नामक दानवों को परास्‍त कीजिये"। तब ब्राह्मणों ने कहा- "हम उन दानवों को पृथ्‍वी पर लाकर परास्‍त करेंगे।" तदनन्‍तर ब्राह्मणों ने कप विनाशक कर्म आरम्‍भ किया। इसका समाचार सुनकर कपों ने ब्राह्मणों के पास अपना धनी नामक दूत भेजा, उसने उन ब्राह्मणों से कपों का संदेश इस प्रकार कहा- "ब्राह्मणों! समस्‍त कप नामक दानव आप लोगों के ही समान हैं। फिर उनके विरुद्ध यहाँ क्‍या हो रहा है? सभी कप वेदों के ज्ञाता और विद्वान हैं। सब-के-सब यज्ञों का अनुष्‍ठान करते हैं। सभी सत्‍य प्रतिज्ञ हैं और सब-के-सब महर्षियों के तुल्‍य हैं। श्री उनके यहाँ रमण करती हैं और वे श्री को धारण करते हैं। वे परनायी स्त्रियों से समागम नहीं करते। मांस को व्‍यर्थ समझकर उसे कभी नहीं खाते हैं। प्रज्‍वलित अग्नि में आहुति देते और गुरुजनों की आज्ञा में स्थित रहते हैं। वे सभी अपने मन को संयम में रखते हैं। बालकों को उनका भाग बाँट देते हैं। निकट आकर धीरे-धीरे चलते हैं। रजस्‍वला स्‍त्री का कभी सेवन नहीं करते। शुभकर्म करते हैं और स्‍वर्ग लोक में जाते हैं। गर्भवती स्‍त्री और वृद्ध आदि के भोजन करने से पहले भोजन नहीं करते हैं। पूर्वाह्न में जुआ नहीं खेलते और दिन में नींद नहीं लेते हैं। इनसे तथा अन्‍य बहुत से गुणों द्वारा संयुक्‍त हुए कप नामक दानवों को आप लोग क्‍यों पराजित करना चाहते हैं? इस अवांछनीय कार्य से निवृत्त होइये, क्‍योंकि निवृत्त होने से ही आप लोगों को सुख मिलेगा।"[2]

तब ब्राह्मणों ने कहा- "जो देवता हैं, वे हम लोग हैं; अत: देवद्रोही कप हमारे लिये वध्‍य हैं। इसलिये हम कपों के कुल को पराजित करेंगे। धनी! तुम जैसे आये हो उसी तरह लौट जाओ।"

धनी ने जाकर कपों से कहा- "ब्राह्मण लोग आपका प्रिय करने को उद्यत नहीं हैं।" यह सुनकर अस्‍त्र-शस्‍त्र हाथ में ले सभी कप ब्राह्मणों पर टूट पड़े। उनकी ऊँची ध्‍वजाएँ फहरा रही थीं। कपों को आक्रमण करते देख सभी ब्राह्मण उन कपों पर प्रज्‍वलित एवं प्राणनाशक अग्नि का प्रहार करने लगे। ब्राह्मणों के छोड़े हुए सनातन अग्निदेव उन कपों का संहार करके आकाश में बादलों के समान प्रकाशित होने लगे। उस समय सब देवताओं ने युद्ध में संगठित होकर दानवों का संहार कर डाला। किंतु उस समय उन्‍हें यह मालूम नहीं था कि ब्राह्मणों ने कपों का विनाश कर डाला है। तदनन्‍तर महातेजस्‍वी नारद ने आकर यह बात बतायी कि किस प्रकार महाभाग ब्राह्मणों ने अपने तेज से कपों का नाश किया है। नारद जी की बात सुनकर सब देवता बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्‍होंने द्विजों और यशस्‍वी ब्राह्मणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।[3]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख