मधि का अंग -कबीर: Difference between revisions
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यहु सीतल बहु तपति है, दोऊ कहिये आगि ॥1॥ | यहु सीतल बहु तपति है, दोऊ कहिये आगि ॥1॥ | ||
दुखिया मूवा | दुखिया मूवा दु:ख कौं, सुखिया सुख कौं झुरि । | ||
सदा अनंदी राम के, जिनि सुख | सदा अनंदी राम के, जिनि सुख दु:ख मेल्हे दूरि ॥2॥ | ||
काबा फिर कासी भया, राम भया रे रहीम । | काबा फिर कासी भया, राम भया रे रहीम । |
Latest revision as of 14:05, 2 June 2017
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`कबीर'दुबिधा दूरि करि,एक अंग ह्वै लागि । |
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