भेष का अंग -कबीर: Difference between revisions
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माला पहर्यां कुछ नहीं, भगति न आई हाथ । | माला पहर्यां कुछ नहीं, भगति न आई हाथ । | ||
माथौ मूँछ मुँडाइ करि, चल्या | माथौ मूँछ मुँडाइ करि, चल्या जगत् के साथ ॥3॥ | ||
साईं सेती सांच चलि, औरां सूं सुध भाइ । | साईं सेती सांच चलि, औरां सूं सुध भाइ । |
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माला पहिरे मनमुषी, ताथैं कछू न होई । |
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