दीन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला: Difference between revisions
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क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ | क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ | ||
कह जाते हो | कह जाते हो | ||
और | और जगत् की ओर ताककर | ||
दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर, | दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर, | ||
सह जाते हो। | सह जाते हो। | ||
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स्वार्थ से हो भरपूर, | स्वार्थ से हो भरपूर, | ||
जगत की निद्रा, है जागरण, | जगत की निद्रा, है जागरण, | ||
और जागरण | और जागरण जगत् का - इस संसृति का | ||
अन्त - विराम - मरण | अन्त - विराम - मरण | ||
अविराम घात - आघात | अविराम घात - आघात |
Latest revision as of 14:16, 30 June 2017
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सह जाते हो |
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