त्रिजट मुनि: Difference between revisions
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*श्रीराम ने वनगमन से पूर्व अपने कोष से अपने प्रत्येक सेवक को इतना धन दान स्वरूप प्रदान किया कि चौदह वर्ष तक वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। कोष का बहुत-सा धन वृद्धों व दीन-दुखियों को उदारतापूर्वक दान कर दिया गया। | *श्रीराम ने वनगमन से पूर्व अपने कोष से अपने प्रत्येक सेवक को इतना धन दान स्वरूप प्रदान किया कि चौदह वर्ष तक वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। कोष का बहुत-सा धन वृद्धों व दीन-दुखियों को उदारतापूर्वक दान कर दिया गया। | ||
*अयोध्या निवासी | *अयोध्या निवासी ग़रीब [[ब्राह्मण]] त्रिजट की तमाम गायें वृद्धावस्था के कारण मर गई थीं। श्रीराम उस ग़रीब की समय-समय पर सहायता करते रहते थे। | ||
*त्रिजट की पत्नी को पता चला कि श्रीराम वनगमन से पूर्व | *त्रिजट की पत्नी को पता चला कि श्रीराम वनगमन से पूर्व ग़रीबों को दान दे रहे हैं तो उसने आग्रह करके अपने पति त्रिजट को [[श्रीराम]] के पास भेजा। | ||
*त्रिजट ने देखा कि महल में वन यात्रा दान महोत्सव जारी है। त्रिजट को श्रीराम के सामने ले जाया गया। | *त्रिजट ने देखा कि महल में वन यात्रा दान महोत्सव जारी है। त्रिजट को श्रीराम के सामने ले जाया गया। | ||
*श्रीराम कृशकाय त्रिजट को देखते ही समझ गए कि उसके पास खाद्यान्न व [[दूध]] आदि का भी सर्वथा अभाव है। उन्होंने कहा- "विप्र देव! आप अपने हाथ का डंडा जितनी दूर भी फेंक सकेंगे, वहाँ तक की भूमि व [[गाय|गायें]] आपकी हो जाएंगी। | *श्रीराम कृशकाय त्रिजट को देखते ही समझ गए कि उसके पास खाद्यान्न व [[दूध]] आदि का भी सर्वथा अभाव है। उन्होंने कहा- "विप्र देव! आप अपने हाथ का डंडा जितनी दूर भी फेंक सकेंगे, वहाँ तक की भूमि व [[गाय|गायें]] आपकी हो जाएंगी। |
Latest revision as of 09:20, 12 April 2018
त्रिजट मुनि अयोध्या के निवासी थे। इनकी समस्त गायें वृद्धावस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त हो चुकी थीं। त्रिजट मुनि के परिवार का भरण-पोषण बड़ी मुश्किलों से हो रहा था। जब त्रिजट को इस बात का पता लगा कि श्रीराम ग़रीबों को दान दे रहे हैं, तब वह भी उनके पास सहायता प्राप्ति हेतु गया।
- श्रीराम ने वनगमन से पूर्व अपने कोष से अपने प्रत्येक सेवक को इतना धन दान स्वरूप प्रदान किया कि चौदह वर्ष तक वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। कोष का बहुत-सा धन वृद्धों व दीन-दुखियों को उदारतापूर्वक दान कर दिया गया।
- अयोध्या निवासी ग़रीब ब्राह्मण त्रिजट की तमाम गायें वृद्धावस्था के कारण मर गई थीं। श्रीराम उस ग़रीब की समय-समय पर सहायता करते रहते थे।
- त्रिजट की पत्नी को पता चला कि श्रीराम वनगमन से पूर्व ग़रीबों को दान दे रहे हैं तो उसने आग्रह करके अपने पति त्रिजट को श्रीराम के पास भेजा।
- त्रिजट ने देखा कि महल में वन यात्रा दान महोत्सव जारी है। त्रिजट को श्रीराम के सामने ले जाया गया।
- श्रीराम कृशकाय त्रिजट को देखते ही समझ गए कि उसके पास खाद्यान्न व दूध आदि का भी सर्वथा अभाव है। उन्होंने कहा- "विप्र देव! आप अपने हाथ का डंडा जितनी दूर भी फेंक सकेंगे, वहाँ तक की भूमि व गायें आपकी हो जाएंगी।
- त्रिजट ने डंडा फेंका। उनका दंड एक हज़ार गायों से युक्त, गोशाला में गिरा, जो कि सरयू नदी के दूसरे पार थी। वे समस्त गायें मुनि त्रिजट की हो गयीं वे राम को आशीर्वाद देकर अपने आश्रम चले गये।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड, सर्ग 32, श्लोक 28-44