रूपसाहि
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:47, 14 October 2011 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "Category:रीति काल" to "Category:रीति कालCategory:रीतिकालीन कवि")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
- रीति काल के कवि रूपसाहि पन्ना के रहने वाले श्रीवास्तव कायस्थ थे।
- इन्होंने संवत 1813 में 'रूपविलास' नामक ग्रंथ लिखा जिसमें दोहे में ही कुछ पिंगल, कुछ अलंकार, नायिका भेद आदि हैं -
जगमगाति सारी जरी झलमल भूषन जोति।
भरी दुपहरी तिया की भेंट पिया सों होति
लालन बेगि चलौ न क्यों बिना तिहारे बाल।
मार मरोरनि सो मरति करिए परसि निहाल
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज