जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै तुम तौ बधात ही तै वहै नाँध नाध्यौ है। लीजिये न छेहु निरगुन सौं न होइ नेहु परबस देहु गेहु ये ही सुख साँध्यौ है। गोकुल के लोग पैं गुपाल न बिसार्यौ जाइ रावरे कहे तौ क्यौं हूँ जोगो काँध काँध्यौ है। कीजिए न रारि ऊधौ देखिये विचारि काहु हीरा छोड़ि डारि कै कसीरा गाँठि बाँध्यौ है।।