जेती देखौं आत्मा, तेता सालिगराम । साधू प्रतषि देव हैं, नहीं पाथर सूं काम ॥1॥ जप तप दीसैं थोथरा, तीरथ ब्रत बेसास । सूवै सैंबल सेविया, यौं जग चल्या निरास ॥2॥ तीरथ तो सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाइ । `कबीर' मूल निकंदिया, कौंण हलाहल खाइ ॥3॥ मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि । दसवां द्वारा देहुरा, तामैं जोति पिछाणि ॥4॥ `कबीर' दुनिया देहुरै, सीस नवांवण जाइ । हिरदा भीतर हरि बसै, तू ताही सौं ल्यौ लाइ ॥5॥