केहि समुझावौ सब जग अन्धा ॥ इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं, सबहि भुलाने पेटके धन्धा । पानी घोड पवन असवरवा, ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ 1 ॥ गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन- हार के पडिगा फन्दा । घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ 2 ॥ लागी आगि सबै बन जरिगा, बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा । कहै कबीर सुनो भाई साधो, जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा ॥ 3 ॥