युवकजनों की है जान; ख़ून की होली जो खेली। पाया है लोगों में मान, ख़ून की होली जो खेली। रँग गये जैसे पलाश; कुसुम किंशुक के, सुहाए, कोकनद के पाए प्राण, ख़ून की होली जो खेली। निकले क्या कोंपल लाल, फाग की आग लगी है, फागुन की टेढ़ी तान, ख़ून की होली जो खेली। खुल गई गीतों की रात, किरन उतरी है प्रात: की;- हाथ कुसुम-वरदान, ख़ून की होली जो खेली। आई सुवेश बहार, आम-लीची की मंजरी; कटहल की अरघान, ख़ून की होली जो खेली। विकच हुए कचनार, हार पड़े अमलतास के; पाटल-होठों मुसकान, ख़ून की होली जो खेली।