स्नेह-निर्झर बह गया है! रेत ज्यों तन रह गया है। आम की यह डाल जो सूखी दिखी, कह रही है - "अब यहाँ पिक या शिखी नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी नहीं जिसका अर्थ- जीवन दह गया है।" "दिये हैं मैने जगत को फूल-फल, किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल; पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-- ठाट जीवन का वही जो ढह गया है।" अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा। बह रही है हृदय पर केवल अमा; मै अलक्षित हूँ; यही कवि कह गया है।