शतरूपा

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शतरूपा संसार की प्रथम स्त्री थी तथा शतरूपा स्वायंभुव मनु की स्त्री थी इनका जन्म ब्रह्मा के वामांग से हुआ था।[1] इन्हें प्रियव्रात, उत्तानपाद आदि सात पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुईं। सुखसागर के अनुसार सृष्टि की वृद्धि के लिये ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया। जिनके नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक भाग से पुरुष तथा दूसरे भाग से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। स्वयंभुव मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये।

  • नरमानस पुत्रों के बाद ब्रह्मा ने अंगजा नाम की एक कन्या उत्पन्न की, जिसके शतरूपा, सरस्वती आदि नाम भी थे।
  • मत्स्य पुराण में लिखा है कि ब्रह्मा से स्वायंभुव मनु, मारीच आदि सात पुत्र हुए[2] हरिहर पुराणानुसार शतरूपा ने घोर तपस्या करके स्वायंभुव मनु को पति रूप में प्राप्त किया था और इनसे वीर नामक एक पुत्र हुआ।
  • मार्कण्डेय पुराण में शतरूपा के दो पुत्रों के अतिरिक्त ऋद्धि तथा प्रसूति नाम की दो कन्याओं का भी उल्लेख है। कहीं-कहीं एक और तीसरी कन्या देवहूति का भी नाम मिलता है।
  • शिव तथा वायु पुराणों में दो कन्याओं प्रसूति एवं आकूति का नाम है।
  • वायु पुराण के अनुसार ब्रह्म शरीर के दो अंश हुए थे, जिनमें से एक से शतरूपा हुई थीं।
  • देवी भागवत आदि में शतरूपा की कथाएँ कुछ भिन्न दी हुई हैं।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्मांडपुराण 2-1-57
  2. मत्स्यपुराण 4-24-30
  3. स्वर्गीय रामाज्ञा द्विवेदी

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