वराहकर्ण
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वराहकर्ण का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार यह एक यक्ष का नाम था।[1]
- 'महाभारत सभा पर्व'[2] में कुबेर की सभा का वर्णन करते हुए नारद जी कहते हैं-
"गन्धर्व और अप्सराओं के समुदाय से भरी तथा दिव्य वाद्य, नृत्य एवं गीतों से निरन्तर गूँजती हुई कुबेर की वह सभा बड़ी मनोहर जान पड़ती है। किन्नर तथा नर नाम वाले गन्धर्व, मणिभद्र, धनद, श्वेतभद्र गुह्यक, कशेरक, गण्डकण्डू, महाबली प्रद्योत, कुस्तुम्बुरु, पिशाच, गजकर्ण, विशालक, वराहकर्ण, ताम्रोष्ठ, फलकक्ष, फलोदक, हंसचूड़, शिखावर्त, हेमनेत्र, विभीषण, पुष्पानन, पिंगलक, शोणितोद, प्रवालक, वृक्षवासी, अनिकेत तथा चीरवासा, ये तथा दूसरे बहुत-से यक्ष लाखों की संख्या में उपस्थित होकर उस सभा में कुबेर की सेवा करते थे।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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