बिनती भरत करत कर जोरे -तुलसीदास: Difference between revisions
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इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये अघ औगुन मेरे॥2॥ | इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये अघ औगुन मेरे॥2॥ | ||
यों कहि सीय-राम-पाँयन परि लखन लाइ उर लीन्हें। | यों कहि सीय-राम-पाँयन परि लखन लाइ उर लीन्हें। | ||
पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन | पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन कीन्हें॥3॥ | ||
तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ। | तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ। | ||
तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न | तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न पैहौ॥4॥ | ||
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Latest revision as of 10:45, 1 November 2014
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बिनती भरत करत कर जोरे। |
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