माधवजू मोसम मंद न कोऊ -तुलसीदास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "२" to "2") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "७" to "7") |
||
(4 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
Line 36: | Line 36: | ||
देखत बिपति बिषय न तजत हौं ताते अधिक अयान्यो॥2॥ | देखत बिपति बिषय न तजत हौं ताते अधिक अयान्यो॥2॥ | ||
महामोह सरिता अपार महँ, संतत फिरत बह्यो। | महामोह सरिता अपार महँ, संतत फिरत बह्यो। | ||
श्रीहरि चरनकमल-नौका तजि फिरि फिरि फेन | श्रीहरि चरनकमल-नौका तजि फिरि फिरि फेन गह्यो॥3॥ | ||
अस्थि पुरातन छुधित स्वान अति ज्यों भरि मुख पकरै। | अस्थि पुरातन छुधित स्वान अति ज्यों भरि मुख पकरै। | ||
निज तालूगत रुधिर पान करि, मन संतोष | निज तालूगत रुधिर पान करि, मन संतोष धरै॥4॥ | ||
परम कठिन भव ब्याल ग्रसित हौं त्रसित भयो अति भारी। | परम कठिन भव ब्याल ग्रसित हौं त्रसित भयो अति भारी। | ||
चाहत अभय भेक सरनागत, खग-पति नाथ | चाहत अभय भेक सरनागत, खग-पति नाथ बिसारी॥5॥ | ||
जलचर-बृंद जाल-अंतरगत होत सिमिट एक पासा। | जलचर-बृंद जाल-अंतरगत होत सिमिट एक पासा। | ||
एकहि एक खात लालच-बस, नहिं देखत निज | एकहि एक खात लालच-बस, नहिं देखत निज नासा॥6॥ | ||
मेरे अघ सारद अनेक जुग गनत पार नहिं पावै। | मेरे अघ सारद अनेक जुग गनत पार नहिं पावै। | ||
तुलसीदास पतित-पावन प्रभु, यह भरोस जिय | तुलसीदास पतित-पावन प्रभु, यह भरोस जिय आवै॥7॥ | ||
</poem> | </poem> |
Latest revision as of 11:32, 1 November 2014
| ||||||||||||||||||
|
माधवजू मोसम मंद न कोऊ। |
संबंधित लेख |