दलपति राय: Difference between revisions
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*दलपति राय महाजन | *[[रीति काल]] के कवि दलपति राय महाजन थे और [[अहमदाबाद]] [[गुजरात]] के रहने वाले थे। | ||
*दलपति राय ने [[बंसीधर]] के साथ मिलकर संवत 1792 में [[उदयपुर]] के महाराणा जगतसिंह के नाम पर 'अलंकार रत्नाकर' नामक ग्रंथ बनाया। इसका आधार [[जसवंत सिंह (राजा)|महाराज जसवंत सिंह]] का '[[भाषाभूषण]]' है। इसका 'भाषा भूषण' के साथ प्राय: वही संबंध है जो 'कुवलयानंद' का 'चंद्रालोक' के साथ। इस ग्रंथ में विशेषता यह है कि इसमें [[अलंकार|अलंकारों]] का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया गया है। इस कार्य के लिए गद्य व्यवहृत हुआ है। | |||
*दलपति राय ने [[बंसीधर]] के साथ मिलकर संवत 1792 में [[उदयपुर]] के महाराणा जगतसिंह के नाम पर 'अलंकार रत्नाकर' नामक ग्रंथ बनाया। इसका आधार महाराज जसवंत सिंह का 'भाषाभूषण' है। इसका 'भाषा भूषण' के साथ प्राय: वही संबंध है जो 'कुवलयानंद' का 'चंद्रालोक' के साथ। इस ग्रंथ में विशेषता यह है कि इसमें [[अलंकार|अलंकारों]] का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया गया है। इस कार्य के लिए गद्य व्यवहृत हुआ है। | |||
*रीति काल के भीतर व्याख्या के लिए कभी कभी गद्य का उपयोग कुछ ग्रंथकारों की सम्यक निरूपण की उत्कंठा सूचित करता है। | *रीति काल के भीतर व्याख्या के लिए कभी कभी गद्य का उपयोग कुछ ग्रंथकारों की सम्यक निरूपण की उत्कंठा सूचित करता है। | ||
*[[दंडी]] आदि कई [[संस्कृत]] आचार्यों के उदाहरण भी लिए गए हैं। | *[[दंडी]] आदि कई [[संस्कृत]] आचार्यों के उदाहरण भी लिए गए हैं। | ||
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*दलपति राय कवि भी अच्छे थे। | *दलपति राय कवि भी अच्छे थे। | ||
*पद्य रचना की निपुणता के अतिरिक्त इनमें भावुकता और बुद्धि वैभव दोनों हैं - | *पद्य रचना की निपुणता के अतिरिक्त इनमें भावुकता और बुद्धि वैभव दोनों हैं - | ||
<blockquote><poem>अरुन हरौल नभ मंडल मुलुक पर | |||
<poem>अरुन हरौल नभ मंडल मुलुक पर | |||
चढयो अक्क चक्कवै कि तानि कै किरिनकोर। | चढयो अक्क चक्कवै कि तानि कै किरिनकोर। | ||
आवत ही साँवत नछत्रा जोय धाय धाय, | आवत ही साँवत नछत्रा जोय धाय धाय, | ||
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आमिल उलूक जाय गिरे कंदरन ओर। | आमिल उलूक जाय गिरे कंदरन ओर। | ||
दुंद देखि अरविंद बंदीखाने तें भगाने, | दुंद देखि अरविंद बंदीखाने तें भगाने, | ||
पायक पुलिंद वै मलिंद मकरंद चोर</poem> | पायक पुलिंद वै मलिंद मकरंद चोर</poem></blockquote> | ||
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Latest revision as of 11:13, 6 May 2015
- रीति काल के कवि दलपति राय महाजन थे और अहमदाबाद गुजरात के रहने वाले थे।
- दलपति राय ने बंसीधर के साथ मिलकर संवत 1792 में उदयपुर के महाराणा जगतसिंह के नाम पर 'अलंकार रत्नाकर' नामक ग्रंथ बनाया। इसका आधार महाराज जसवंत सिंह का 'भाषाभूषण' है। इसका 'भाषा भूषण' के साथ प्राय: वही संबंध है जो 'कुवलयानंद' का 'चंद्रालोक' के साथ। इस ग्रंथ में विशेषता यह है कि इसमें अलंकारों का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया गया है। इस कार्य के लिए गद्य व्यवहृत हुआ है।
- रीति काल के भीतर व्याख्या के लिए कभी कभी गद्य का उपयोग कुछ ग्रंथकारों की सम्यक निरूपण की उत्कंठा सूचित करता है।
- दंडी आदि कई संस्कृत आचार्यों के उदाहरण भी लिए गए हैं।
- हिन्दी कवियों की लंबी नामावली ऐतिहासिक खोज में बहुत उपयोगी है।
- दलपति राय कवि भी अच्छे थे।
- पद्य रचना की निपुणता के अतिरिक्त इनमें भावुकता और बुद्धि वैभव दोनों हैं -
अरुन हरौल नभ मंडल मुलुक पर
चढयो अक्क चक्कवै कि तानि कै किरिनकोर।
आवत ही साँवत नछत्रा जोय धाय धाय,
घोर घमासान करि काम आए ठौर ठौर
ससहर सेत भयो, सटक्यो सहमि ससी,
आमिल उलूक जाय गिरे कंदरन ओर।
दुंद देखि अरविंद बंदीखाने तें भगाने,
पायक पुलिंद वै मलिंद मकरंद चोर
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