लाज न आवत दास कहावत -तुलसीदास: Difference between revisions
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सो आचरन-बिसारि सोच तजि जो हरि तुम कहँ भावत॥1॥ | सो आचरन-बिसारि सोच तजि जो हरि तुम कहँ भावत॥1॥ | ||
सकल संग तजि भजत जाहि मुनि, जप तप जाग बनावत। | सकल संग तजि भजत जाहि मुनि, जप तप जाग बनावत। | ||
मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि | मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि पावत॥2॥ | ||
हरि निरमल, मल ग्रसित | हरि निरमल, मल ग्रसित हृदय, असंजस मोहि जनावत। | ||
जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ | जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ आवत॥3॥ | ||
जाकी सरन जाइ कोबिद, दारुन त्रयताप बुझावत। | जाकी सरन जाइ कोबिद, दारुन त्रयताप बुझावत। | ||
तहूँ गये मद मोह लोभ अति, सरगहुँ मिटत न | तहूँ गये मद मोह लोभ अति, सरगहुँ मिटत न सावत॥4॥ | ||
भव-सरिता कहँ नाउ संत यह कहि औरनि समुझावत। | भव-सरिता कहँ नाउ संत यह कहि औरनि समुझावत। | ||
हौं तिनसों हरि परम बैर करि तुमसों भलो | हौं तिनसों हरि परम बैर करि तुमसों भलो मनावत॥5॥ | ||
नाहिन और ठौर मो कहॅं, तातें हठि नातो लावत। | नाहिन और ठौर मो कहॅं, तातें हठि नातो लावत। | ||
राखु सरन उदार-चूड़ामनि, तुलसिदास गुन | राखु सरन उदार-चूड़ामनि, तुलसिदास गुन गावत॥6॥ | ||
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Latest revision as of 09:52, 24 February 2017
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लाज न आवत दास कहावत। |
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