जीना अपने ही में -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions
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|मुख्य रचनाएँ=वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि | |मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], चिदंबरा, [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत|लोकायतन]], हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि | ||
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<poem> | <poem> | ||
जीना अपने ही में | जीना अपने ही में | ||
एक | एक महान् कर्म है, | ||
जीने का हो सदुपयोग | जीने का हो सदुपयोग | ||
यह मनुज धर्म | यह मनुज धर्म है। | ||
अपने ही में रहना | अपने ही में रहना | ||
एक प्रबुद्ध कला है | एक प्रबुद्ध कला है, | ||
जग के हित रहने में | जग के हित रहने में | ||
सबका सहज भला | सबका सहज भला है। | ||
जग का प्यार मिले | जग का प्यार मिले | ||
जन्मों के पुण्य चाहिए | जन्मों के पुण्य चाहिए, | ||
जग जीवन को | जग जीवन को | ||
प्रेम सिन्धु में डूब | प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए। | ||
ज्ञानी बनकर | ज्ञानी बनकर | ||
मत नीरस उपदेश दीजिए | मत नीरस उपदेश दीजिए, | ||
लोक कर्म भव सत्य | लोक कर्म भव सत्य | ||
प्रथम सत्कर्म | प्रथम सत्कर्म कीजिए। | ||
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Latest revision as of 14:16, 30 June 2017
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जीना अपने ही में |
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