चंडीदास: Difference between revisions
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चंडीदास के गीतों की लोकप्रियता के कारण उनके गीतों से मिलते-जुलते गीतों की रचना प्रारंभ हुई, जिससे कवि की सुस्पष्ट पहचान स्थापित करने में कठिनाई होती है। इसमें साथ ही उनके जीवन से बहुत सी किंवदंतियाँ भी जुड़ गई। उनकी कविताओं से पता चलता है कि कवि गांव के पुरोहित (बांकुरा ज़िले के छतना गांव या वीरभूम ज़िले के नन्नूर में) थे। उन्होंने निम्न जाति की रामी के प्रति अपने प्रेम को सबके सामने उद्-घोषित कर परंपरा को तोड़ा था। प्रेमी उनके संबंध को दिव्य प्रेमियों, श्री कृष्ण और राधा के आध्यात्मिक मिलन के समान पवित्र मानते थे। | चंडीदास के गीतों की लोकप्रियता के कारण उनके गीतों से मिलते-जुलते गीतों की रचना प्रारंभ हुई, जिससे कवि की सुस्पष्ट पहचान स्थापित करने में कठिनाई होती है। इसमें साथ ही उनके जीवन से बहुत सी किंवदंतियाँ भी जुड़ गई। उनकी कविताओं से पता चलता है कि कवि गांव के पुरोहित (बांकुरा ज़िले के छतना गांव या वीरभूम ज़िले के नन्नूर में) थे। उन्होंने निम्न जाति की रामी के प्रति अपने प्रेम को सबके सामने उद्-घोषित कर परंपरा को तोड़ा था। प्रेमी उनके संबंध को दिव्य प्रेमियों, श्री कृष्ण और राधा के आध्यात्मिक मिलन के समान पवित्र मानते थे। | ||
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चंडीदास के काव्य का बाद के [[बांग्ला साहित्य]], [[कला]] और धार्मिक चिंतन पर गहरा प्रभाव पड़ा। 16वीं शताब्दी के सहज्या पंथ के सहज्या ([[संस्कृत]] शब्द , | चंडीदास के काव्य का बाद के [[बांग्ला साहित्य]], [[कला]] और धार्मिक चिंतन पर गहरा प्रभाव पड़ा। 16वीं शताब्दी के सहज्या पंथ के सहज्या ([[संस्कृत]] शब्द , अर्थात् प्राकृतिक) आंदोलन में इंद्रियों के माध्यम से धार्मिक अनुभवों को पाने की कोशिश की गई, जिसमें निम्न जाति की स्त्री या किसी अन्य की पत्नी से सामाजिक अस्वीकृति के बावजूद, गहनतम प्रेम की प्रशंसा की गई। | ||
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चंडीदास (उत्कर्ष-14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 15वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक, बंगाल , भारत), एक कवि, जिनके रामी धोबिन को संबोधित प्रेमगीत मध्य काल में बेहद लोकप्रिय थे। उनके गीत मानव व दिव्य प्रेम के बीच समानता खोजते थे तथा वैष्णव व सहज्या धार्मिक आंदोलनों के प्रेरणास्रोत भी थे।
गीतों की लोकप्रियता
चंडीदास के गीतों की लोकप्रियता के कारण उनके गीतों से मिलते-जुलते गीतों की रचना प्रारंभ हुई, जिससे कवि की सुस्पष्ट पहचान स्थापित करने में कठिनाई होती है। इसमें साथ ही उनके जीवन से बहुत सी किंवदंतियाँ भी जुड़ गई। उनकी कविताओं से पता चलता है कि कवि गांव के पुरोहित (बांकुरा ज़िले के छतना गांव या वीरभूम ज़िले के नन्नूर में) थे। उन्होंने निम्न जाति की रामी के प्रति अपने प्रेम को सबके सामने उद्-घोषित कर परंपरा को तोड़ा था। प्रेमी उनके संबंध को दिव्य प्रेमियों, श्री कृष्ण और राधा के आध्यात्मिक मिलन के समान पवित्र मानते थे।
किंवदंतियों के अनुसार
- चंडीदास द्वारा मंदिर के कार्यो के साथ-साथ रामी के प्रति अपना प्रेम बनाए रखने के कारण उनका परिवार उनसे रुष्ट हो गया। गाँव के ब्राह्मणों को प्रसन्न करने के लिए एक भोज का आयोजन किया गया, लेकिन रामी के अचानक पहुँच जाने से उलझन पैदा हो गयी। इसके बाद के घटनाक्रम को लेकर किंवदंतियों के कारण भ्रम उत्पन्न होता है।
- एक किंवदंती के अनुसार, चंडीदास ने विष्णु का रूप धारण कर लिया।
- एक अन्य के अनुसार, उन्हें पुरोहित के पद से हटा दिया गया और उन्होंने विरोध में आमरण अनशन किया, किंतु अंतिम संस्कार के समय वह पुनर्जिवित हो गए।
- तीसरी किंवदंती के अनुसार, (संभवत: रामी द्वारा लिखित कविताओं पर आधारित) गौर के नवाब की बेगम उनकी ओर आकृष्ट हो गई थी। इसी कारण नवाब के आदेश पर हाथी के पीछे बांधकर कोड़े लगाए जाने से उनकी मृत्यु हो गई।
काव्य
चंडीदास के काव्य का बाद के बांग्ला साहित्य, कला और धार्मिक चिंतन पर गहरा प्रभाव पड़ा। 16वीं शताब्दी के सहज्या पंथ के सहज्या (संस्कृत शब्द , अर्थात् प्राकृतिक) आंदोलन में इंद्रियों के माध्यम से धार्मिक अनुभवों को पाने की कोशिश की गई, जिसमें निम्न जाति की स्त्री या किसी अन्य की पत्नी से सामाजिक अस्वीकृति के बावजूद, गहनतम प्रेम की प्रशंसा की गई।
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