परिवर्तन -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

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आज कहां वह पूर्ण-पुरातन, वह सुवर्ण का काल?
आज कहां वह पूर्ण-पुरातन, वह सुवर्ण का काल?


        भूतियों का दिगंत-छबि-जाल,
भूतियों का दिगंत-छवि-जाल,
        ज्योति-चुम्बित जगती का भाल?
ज्योति-चुम्बित जगती का भाल?
 
राशि राशि विकसित वसुधा का वह यौवन-विस्तार?
राशि राशि विकसित वसुधा का वह यौवन-विस्तार?


        स्वर्ग की सुषमा जब साभार
स्वर्ग की सुषमा जब साभार
        धरा पर करती थी अभिसार!
धरा पर करती थी अभिसार!
        प्रसूनों के शाश्वत-शृंगार,
प्रसूनों के शाश्वत-श्रृंगार,
        (स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार)
(स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार)
        गूंज उठते थे बारंबार,
गूंज उठते थे बारंबार,
 
            सृष्टि के प्रथमोद्गार!
 
        नग्न-सुंदरता थी सुकुमार,
 
            ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार!


सृष्टि के प्रथमोद्गार!
नग्न-सुंदरता थी सुकुमार,
ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार!
अये, विश्व का स्वर्ण-स्वप्न, संसृति का प्रथम-प्रभात,
अये, विश्व का स्वर्ण-स्वप्न, संसृति का प्रथम-प्रभात,


        कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात?
कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात?
        दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात,
दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात,
        अपरिचित जरा-मरण-भ्रू-पात!
अपरिचित जरा-मरण-भ्रू-पात!




        (2)
(2)


अहे निष्ठुर परिवर्तन!
अहे निष्ठुर परिवर्तन!

Latest revision as of 07:58, 7 November 2017

परिवर्तन -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

(1)

आज कहां वह पूर्ण-पुरातन, वह सुवर्ण का काल?

भूतियों का दिगंत-छवि-जाल,
ज्योति-चुम्बित जगती का भाल?
राशि राशि विकसित वसुधा का वह यौवन-विस्तार?

स्वर्ग की सुषमा जब साभार
धरा पर करती थी अभिसार!
प्रसूनों के शाश्वत-श्रृंगार,
(स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार)
गूंज उठते थे बारंबार,

सृष्टि के प्रथमोद्गार!
नग्न-सुंदरता थी सुकुमार,
ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार!
अये, विश्व का स्वर्ण-स्वप्न, संसृति का प्रथम-प्रभात,

कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात?
दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात,
अपरिचित जरा-मरण-भ्रू-पात!


(2)

अहे निष्ठुर परिवर्तन!
तुम्हारा ही तांडव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन!
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन!
अहे वासुकि सहस्र फन!

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