अमर स्पर्श -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

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सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।


क्यों रहे न जीवन में सुख दुख
क्यों रहे न जीवन में सुख दुख,
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख,
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!


तन में आएँ शैशव यौवन
तन में आएँ शैशव यौवन,
मन में हों विरह मिलन के व्रण,
मन में हों विरह मिलन के व्रण,
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन,
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!


जो नित्य अनित्य जगत का क्रम
जो नित्य अनित्य जगत् का क्रम,
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,
जग से परिचय, तुमसे परिणय!
जग से परिचय, तुमसे परिणय!


तुम सुंदर से बन अति सुंदर
तुम सुंदर से बन अति सुंदर,
आओ अंतर में अंतरतर,
आओ अंतर में अंतर तर,
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर  
वरदान, पराजय हो निश्चय!   
वरदान, पराजय हो निश्चय!   
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Latest revision as of 13:53, 30 June 2017

अमर स्पर्श -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

खिल उठा हृदय,
पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय!

खुल गए साधना के बंधन,
संगीत बना, उर का रोदन,
अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण,
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।

क्यों रहे न जीवन में सुख दुख,
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख,
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!

तन में आएँ शैशव यौवन,
मन में हों विरह मिलन के व्रण,
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन,
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!

जो नित्य अनित्य जगत् का क्रम,
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,
जग से परिचय, तुमसे परिणय!

तुम सुंदर से बन अति सुंदर,
आओ अंतर में अंतर तर,
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर
वरदान, पराजय हो निश्चय!

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