कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो -तुलसीदास: Difference between revisions
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परुष बचन अति दुसह स्रवन, सुनि तेहि पावक न दहौगो। | परुष बचन अति दुसह स्रवन, सुनि तेहि पावक न दहौगो। | ||
बिगत मान सम सीतल मन, पर-गुन, नहिं दोष कहौगो। | बिगत मान सम सीतल मन, पर-गुन, नहिं दोष कहौगो। | ||
परिहरि देहजनित चिंता | परिहरि देहजनित चिंता दु:ख सुख समबुद्धि सहौगो। | ||
तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरिभक्ति लहौगो। | तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरिभक्ति लहौगो। | ||
Latest revision as of 14:01, 2 June 2017
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कबहुंक हौं यहि रहनि रहौगो। |
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