कल्हण: Difference between revisions
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कल्हण ने '[[राजतरंगिणी]]' नामक महान महाकाव्य की रचना की। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'राजतरंगिणी' में, जिसकी रचना 1148 से 1150 ई. के बीच हुई, कश्मीर के आरंभ से लेकर रचना के समय तक का क्रमबद्ध इतिहास अंकित है। यह कश्मीर का राजनीतिक उथलपुथल का काल था। आरंभिक भाग में यद्यपि पुराणों के ढंग का विवरण अधिक मिलता है, परंतु बाद की अवधि का विवरण पूरी ऐतिहासिक ईमानदारी से दिया गया है। अपने ग्रंथ के आरंभ में कल्हण ने लिखा है- | |||
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अपने ग्रंथ में कल्हण ने इस आदर्श को सदा ध्यान में रखा है इसलिए कश्मीर के ही नहीं, तत्काल [[भारतीय इतिहास]] के संबंध में भी राजतरंगिणी में बड़ी महत्त्वपूर्ण और प्रमाणिक सामग्री प्राप्त होती है। राजतंरगिनी के उद्वरण अधिकतर इतिहासकारों ने इस्तेमाल किये है । | |||
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Revision as of 11:59, 18 November 2012
कल्हण एक सुसंस्कृत शिक्षित कश्मीरी ब्राह्मण कवि थे जिसके राजपरिवारों में अच्छे सम्बन्ध थे। कश्मीर निवासी कल्हण, जिनका वास्तविक नाम कल्याण था, संस्कृत के श्रेष्ठ ऐतिहासिक महाकाव्यकार माने जाते हैं।
प्रसिद्ध रचना 'राजतरंगिणी'
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कल्हण ने 'राजतरंगिणी' नामक महान महाकाव्य की रचना की। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'राजतरंगिणी' में, जिसकी रचना 1148 से 1150 ई. के बीच हुई, कश्मीर के आरंभ से लेकर रचना के समय तक का क्रमबद्ध इतिहास अंकित है। यह कश्मीर का राजनीतिक उथलपुथल का काल था। आरंभिक भाग में यद्यपि पुराणों के ढंग का विवरण अधिक मिलता है, परंतु बाद की अवधि का विवरण पूरी ऐतिहासिक ईमानदारी से दिया गया है। अपने ग्रंथ के आरंभ में कल्हण ने लिखा है-
'वही श्रेष्ठ कवि प्रशंसा का अधिकारी है जिसके शब्द एक न्यायाधीश के पादक्य की भांति अतीत का चित्रण करने में घृणा अथवा प्रेम की भावना से मुक्त होते हैं।'
अपने ग्रंथ में कल्हण ने इस आदर्श को सदा ध्यान में रखा है इसलिए कश्मीर के ही नहीं, तत्काल भारतीय इतिहास के संबंध में भी राजतरंगिणी में बड़ी महत्त्वपूर्ण और प्रमाणिक सामग्री प्राप्त होती है। राजतंरगिनी के उद्वरण अधिकतर इतिहासकारों ने इस्तेमाल किये है ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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