दीन-हित बिरद पुराननि गायो -तुलसीदास: Difference between revisions
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तुम्हरे रिपुको अनुज बिभीषन बंस निसाचर जायो। | तुम्हरे रिपुको अनुज बिभीषन बंस निसाचर जायो। | ||
सुनि गुन सील सुभाउ नाथको मैं चरनानि चितु लायो॥2॥ | सुनि गुन सील सुभाउ नाथको मैं चरनानि चितु लायो॥2॥ | ||
जानत प्रभु | जानत प्रभु दु:ख सुख दासिनको तातें कहि न सुनायो। | ||
करि करुना भरि नयन बिलोकहु तब जानौं अपनायो॥3॥ | करि करुना भरि नयन बिलोकहु तब जानौं अपनायो॥3॥ | ||
बचन बिनीत सुनत रघुनायक हँसि करि निकट बुलायो। | बचन बिनीत सुनत रघुनायक हँसि करि निकट बुलायो। |
Latest revision as of 14:01, 2 June 2017
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दीन-हित बिरद पुराननि गायो। |
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