लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास: Difference between revisions
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काय-बचन-मन सपनेहु कबहुँक घटत न काज | काय-बचन-मन सपनेहु कबहुँक घटत न काज पराये॥1॥ | ||
जो सुख सुरपुर नरक गेह बन आवत बिनहि बुलाये। | जो सुख सुरपुर नरक गेह बन आवत बिनहि बुलाये। | ||
तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥२॥ | तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥२॥ |
Revision as of 09:49, 1 November 2014
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लाभ कहा मानुष-तनु पाये। |
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