लाल कवि: Difference between revisions
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|पूरा नाम= गोरे लाल पुरोहित | |||
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|मुख्य रचनाएँ=[[छत्रप्रकाश]], विष्णुविलास, राजविनोद। | |||
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'''लाल कवि''' का नाम 'गोरे लाल पुरोहित' था और ये 'मऊ', [[बुंदेलखंड]] के रहने वाले थे। इन्होंने प्रसिद्ध [[छत्रसाल|महाराज छत्रसाल]] की आज्ञा से उनका जीवनचरित '[[छत्रप्रकाश]]' में दोहों चौपाइयों में बड़े ब्योरे के साथ वर्णन किया है। इस पुस्तक में छत्रसाल का [[संवत्]] 1764 तक का ही वृत्तांत आया है। इससे अनुमान होता है कि या तो यह ग्रंथ अधूरा ही मिला है अथवा लाल कवि का परलोकवास छत्रसाल के पूर्व ही हो गया था। जो कुछ हो इतिहास की दृष्टि से '[[छत्रप्रकाश]]' बड़े महत्व की पुस्तक है। | '''लाल कवि''' का नाम 'गोरे लाल पुरोहित' था और ये 'मऊ', [[बुंदेलखंड]] के रहने वाले थे। इन्होंने प्रसिद्ध [[छत्रसाल|महाराज छत्रसाल]] की आज्ञा से उनका जीवनचरित '[[छत्रप्रकाश]]' में दोहों चौपाइयों में बड़े ब्योरे के साथ वर्णन किया है। इस पुस्तक में छत्रसाल का [[संवत्]] 1764 तक का ही वृत्तांत आया है। इससे अनुमान होता है कि या तो यह ग्रंथ अधूरा ही मिला है अथवा लाल कवि का परलोकवास छत्रसाल के पूर्व ही हो गया था। जो कुछ हो इतिहास की दृष्टि से '[[छत्रप्रकाश]]' बड़े महत्व की पुस्तक है। | ||
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Revision as of 12:26, 2 March 2012
लाल कवि
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पूरा नाम | गोरे लाल पुरोहित |
जन्म | 1658 |
मृत्यु | 1707 |
मुख्य रचनाएँ | छत्रप्रकाश, विष्णुविलास, राजविनोद। |
अद्यतन | 17:56, 2 मार्च 2012 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
लाल कवि का नाम 'गोरे लाल पुरोहित' था और ये 'मऊ', बुंदेलखंड के रहने वाले थे। इन्होंने प्रसिद्ध महाराज छत्रसाल की आज्ञा से उनका जीवनचरित 'छत्रप्रकाश' में दोहों चौपाइयों में बड़े ब्योरे के साथ वर्णन किया है। इस पुस्तक में छत्रसाल का संवत् 1764 तक का ही वृत्तांत आया है। इससे अनुमान होता है कि या तो यह ग्रंथ अधूरा ही मिला है अथवा लाल कवि का परलोकवास छत्रसाल के पूर्व ही हो गया था। जो कुछ हो इतिहास की दृष्टि से 'छत्रप्रकाश' बड़े महत्व की पुस्तक है।
- रचनाएँ
'छत्रप्रकाश' में लाल कवि ने बुंदेल वंश की उत्पत्ति, चंपतराय के विजय वृत्तांत, उनके उद्योग और पराक्रम, चंपतराय के अंतिम दिनों में उनके राज्य का उध्दार, फिर क्रमश: विजय पर विजय प्राप्त करते हुए मुग़लों का नाकों दम करना इत्यादि बातों का विस्तार से वर्णन किया है। काव्य और इतिहास दोनों की दृष्टि से यह ग्रंथ हिन्दी में अपने ढंग का अनूठा है। लाल कवि का एक और ग्रंथ 'विष्णुविलास' है जिसमें बरवै छंद में नायिकाभेद कहा गया है। पर इस कवि की कीर्ति का स्तंभ 'छत्रप्रकाश' ही है -
लखत पुरुष लच्छन सब जाने।
सतकबि कबित सुनत रस पागे।
रुचि सो लखत तुरंग जो नीके।
चौंकि चौंकि सब दिसि उठै सूबा खान खुमान।
अब धौं धावै कौन पर छत्रसाल बलवान[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ छत्रसाल प्रशंसा
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 231।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख