लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास: Difference between revisions
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तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥2॥ | तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥2॥ | ||
पर-दारा परद्रोह, मोह-बस किये मूढ़ मन भाये। | पर-दारा परद्रोह, मोह-बस किये मूढ़ मन भाये। | ||
गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति | गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥3॥ | ||
भय,निद्रा, मैथुन, अहार सबके समान जग जाये। | भय,निद्रा, मैथुन, अहार सबके समान जग जाये। | ||
सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥४॥ | सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥४॥ |
Revision as of 10:10, 1 November 2014
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लाभ कहा मानुष-तनु पाये। |
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