माधवजू मोसम मंद न कोऊ -तुलसीदास: Difference between revisions
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निज तालूगत रुधिर पान करि, मन संतोष धरै॥4॥ | निज तालूगत रुधिर पान करि, मन संतोष धरै॥4॥ | ||
परम कठिन भव ब्याल ग्रसित हौं त्रसित भयो अति भारी। | परम कठिन भव ब्याल ग्रसित हौं त्रसित भयो अति भारी। | ||
चाहत अभय भेक सरनागत, खग-पति नाथ | चाहत अभय भेक सरनागत, खग-पति नाथ बिसारी॥5॥ | ||
जलचर-बृंद जाल-अंतरगत होत सिमिट एक पासा। | जलचर-बृंद जाल-अंतरगत होत सिमिट एक पासा। | ||
एकहि एक खात लालच-बस, नहिं देखत निज नासा॥६॥ | एकहि एक खात लालच-बस, नहिं देखत निज नासा॥६॥ |
Revision as of 11:21, 1 November 2014
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माधवजू मोसम मंद न कोऊ। |
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