अली मुहीब ख़ाँ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (अली मुहिब खाँ का नाम बदलकर अली मुहीब ख़ाँ कर दिया गया है)
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''अली मुहिब खाँ''' [[आगरा]] के रहने वाले [[रीति काल]] के कवि थे। इनका उपनाम 'प्रीतम' था।  
'''अली मुहीब ख़ाँ''' [[आगरा]] के रहने वाले [[रीति काल]] के कवि थे। इनका उपनाम 'प्रीतम' था। इन्होंने [[संवत]] 1787 में 'खटमल बाईसी' नाम की [[हास्य रस]] की एक पुस्तक लिखी। इसके आरंभ में कहा गया है कि [[रीति काल]] में प्रधानता शृंगार रस की रही; यद्यपि वीर रस लेकर भी रीति ग्रंथ रचे गए। किंतु किसी और रस को लेकर किसी ने रचना नहीं की। यह काम हजरत अली मुहिब खाँ साहिब ने ही किया। इस ग्रंथ का साहित्यिक महत्व कई पक्षों में दिखाई पड़ता है। हास्य आलंबन प्रधान रस है। आलंबन मात्र का वर्णन ही इस रस में पर्याप्त होता है। [[संस्कृत]] के नाटकों में एक निश्चित सी परम्परा बहुत कुछ बँधी सी चली आई। [[भाषा]] साहित्य में अधिकतर अली मुहिब खाँ ही हास्य रस के आलंबन रहे।  
*इन्होंने [[संवत]] 1787 में 'खटमल बाईसी' नाम की हास्य रस की एक पुस्तक लिखी। इसके आरंभ में कहा गया है कि रीति काल में प्रधानता शृंगार रस की रही; यद्यपि वीर रस लेकर भी रीति ग्रंथ रचे गए। किंतु किसी और रस को लेकर किसी ने रचना नहीं की। यह काम हजरत अली मुहिब खाँ साहिब ने ही किया।  
==रचनाएँ==
*इस ग्रंथ का साहित्यिक महत्व कई पक्षों में दिखाई पड़ता है। हास्य आलंबन प्रधान रस है। आलंबन मात्र का वर्णन ही इस रस में पर्याप्त होता है।  
*ख़ाँ साहब ने शिष्ट हास का बहुत अच्छा वर्णन किया। इन्होंने हास्य रस के लिए खटमल को पकड़ा जिस पर यह [[संस्कृत]] उक्ति प्रसिद्ध है -  
*[[संस्कृत]] के नाटकों में एक निश्चित सी परम्परा बहुत कुछ बँधी सी चली आई।  
*[[भाषा]] साहित्य में अधिकतर अली मुहिब खाँ ही हास्य रस के आलंबन रहे।  
*खाँ साहब ने शिष्ट हास का बहुत अच्छा वर्णन किया। इन्होंने हास्यरस के लिए खटमल को पकड़ा जिस पर यह [[संस्कृत]] उक्ति प्रसिद्ध है -  
<poem>कमला कमले शेते, हरश्शेते हिमालये।
<poem>कमला कमले शेते, हरश्शेते हिमालये।
क्षीराब्धौ च हरिश्शेते मन्ये मत्कुणशंकया</poem>
क्षीराब्धौ च हरिश्शेते मन्ये मत्कुणशंकया</poem>
Line 36: Line 33:
{{भारत के कवि}}
{{भारत के कवि}}
[[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]]
[[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]]
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]]
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 11:55, 4 May 2015

अली मुहीब ख़ाँ आगरा के रहने वाले रीति काल के कवि थे। इनका उपनाम 'प्रीतम' था। इन्होंने संवत 1787 में 'खटमल बाईसी' नाम की हास्य रस की एक पुस्तक लिखी। इसके आरंभ में कहा गया है कि रीति काल में प्रधानता शृंगार रस की रही; यद्यपि वीर रस लेकर भी रीति ग्रंथ रचे गए। किंतु किसी और रस को लेकर किसी ने रचना नहीं की। यह काम हजरत अली मुहिब खाँ साहिब ने ही किया। इस ग्रंथ का साहित्यिक महत्व कई पक्षों में दिखाई पड़ता है। हास्य आलंबन प्रधान रस है। आलंबन मात्र का वर्णन ही इस रस में पर्याप्त होता है। संस्कृत के नाटकों में एक निश्चित सी परम्परा बहुत कुछ बँधी सी चली आई। भाषा साहित्य में अधिकतर अली मुहिब खाँ ही हास्य रस के आलंबन रहे।

रचनाएँ

  • ख़ाँ साहब ने शिष्ट हास का बहुत अच्छा वर्णन किया। इन्होंने हास्य रस के लिए खटमल को पकड़ा जिस पर यह संस्कृत उक्ति प्रसिद्ध है -

कमला कमले शेते, हरश्शेते हिमालये।
क्षीराब्धौ च हरिश्शेते मन्ये मत्कुणशंकया

  • इनका हास गंभीर हास है। क्षुद्र और महत के अभेद की भावना उसके भीतर कहीं छिपी हुई है।
  • इससे खाँ साहब या प्रीतम जी को एक उत्तम श्रेणी का पथ प्रदर्शक कवि माना जाता हैं।
  • इनका और कोई ग्रंथ नहीं मिलता। इनकी 'खटमल बाईसी' ही बहुत काल तक इनका स्मरण बनाए रखने के लिए काफ़ी है -

जगत के कारन करन चारौ वेदन के
कमल में बसे वै सुजान ज्ञान धारि कै।
पोषन अवनि, दुखसोषन तिलोकन के,
सागर मैं जाय सोए सेस सेज करि कै
मदन जरायो जो सँहारे दृष्टि ही में सृष्टि,
बसे है पहार वेऊ भाजि हरबरि कै।
बिधि हरि हर, और इनतें न कोऊ, तेऊ
खाट पै न सोवैं खटमलन कों डरिकै

बाघन पै गयो, देखि बनन में रहे छपि,
साँपन पै गयो, ते पताल ठौर पाई है।
गजन पै गयो,धूल डारत हैं सीस पर,
बैदन पै गयो काहू दारू ना बताई है
जब हहराय हम हरि के निकट गए,
हरि मोसों कही तेरी मति भूल छाई है।
कोऊ ना उपाय, भटकत जनि डोलै, सुन,
खाट के नगर खटमल की दुहाई है [1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'खटमल बाईसी' से

सम्बंधित लेख