कालिदास त्रिवेदी: Difference between revisions
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*इन रचनाओं के अतिरिक्त इनका बड़ा संग्रह ग्रंथ 'कालिदास हजारा' प्रसिद्ध है। इस संग्रह के संबंध में 'शिवसिंह सरोज' में लिखा है कि इसमें संवत 1481 से लेकर संवत 1776 तक के 212 कवियों के 1000 पद्य संगृहीत हैं। कवियों के काल आदि के निर्णय में यह ग्रंथ बड़ा ही उपयोगी है। | *इन रचनाओं के अतिरिक्त इनका बड़ा संग्रह ग्रंथ 'कालिदास हजारा' प्रसिद्ध है। इस संग्रह के संबंध में 'शिवसिंह सरोज' में लिखा है कि इसमें संवत 1481 से लेकर संवत 1776 तक के 212 कवियों के 1000 पद्य संगृहीत हैं। कवियों के काल आदि के निर्णय में यह ग्रंथ बड़ा ही उपयोगी है। | ||
*इनके पुत्र '''कवींद्र''' और पौत्र '''दूलह''' भी बड़े अच्छे कवि हुए। | *इनके पुत्र '''[[कवींद्र]]''' और पौत्र '''दूलह''' भी बड़े अच्छे कवि हुए। | ||
*यह एक अभ्यस्त और निपुण कवि थे। | *यह एक अभ्यस्त और निपुण कवि थे। | ||
*इनके फुटकल कवित्त इधर उधर बहुत सुने जाते हैं, जिससे इनकी सहृदयता का परिचय मिलता है - | *इनके फुटकल कवित्त इधर उधर बहुत सुने जाते हैं, जिससे इनकी सहृदयता का परिचय मिलता है - |
Revision as of 09:26, 12 May 2011
- कालिदास त्रिवेदी अंतर्वेद के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण एवं मुग़ल कालीन कवि थे।
- कालिदास त्रिवेदी का विशेष जीवन वृत्त ज्ञात नहीं है।
- कहा जाता है कि संवत 1745 की गोलकुंडा की चढ़ाई में यह औरंगज़ेब की सेना में किसी राजा के साथ गए थे। इस लड़ाई का औरंगज़ेब की प्रशंसा से युक्त वर्णन इन्होंने इस प्रकार किया है -
गढ़न गढ़ी से गढ़ि, महल मढ़ी से मढ़ि,
बीजापुर ओप्यो दलमलि सुघराई में।
कालिदास कोप्यो वीर औलिया अलमगीर,
तीन तरवारि गही पुहुमी पराई में
बूँद तें निकसि महिमंडल घमंड मची,
लोहू की लहरि हिमगिरि की तराई में।
गाड़ि के सुझंडा आड़ कीनी बादशाह तातें,
डकरी चमुंडा गोलकुंडा की लराई में
- कालिदास का जंबू नरेश 'जोगजीत' सिंह के यहाँ भी रहना पाया जाता है जिनके लिए संवत 1749 में इन्होंने 'वार वधू विनोद' बनाया था। यह नायिका भेद और नख शिख की पुस्तक है।
- बत्तीस कवित्तों की इनकी एक छोटी सी पुस्तक 'जँजीराबंद' भी है।
- 'राधा माधव बुधा मिलन विनोद' नाम का इनका एक और ग्रंथ मिला है।
- इन रचनाओं के अतिरिक्त इनका बड़ा संग्रह ग्रंथ 'कालिदास हजारा' प्रसिद्ध है। इस संग्रह के संबंध में 'शिवसिंह सरोज' में लिखा है कि इसमें संवत 1481 से लेकर संवत 1776 तक के 212 कवियों के 1000 पद्य संगृहीत हैं। कवियों के काल आदि के निर्णय में यह ग्रंथ बड़ा ही उपयोगी है।
- इनके पुत्र कवींद्र और पौत्र दूलह भी बड़े अच्छे कवि हुए।
- यह एक अभ्यस्त और निपुण कवि थे।
- इनके फुटकल कवित्त इधर उधर बहुत सुने जाते हैं, जिससे इनकी सहृदयता का परिचय मिलता है -
चूमौं करकंज मंजु अमल अनूप तेरो,
रूप के निधान कान्ह! मो तन निहारि दै।
कालिदास कहै मेरे पास हरै हेरि हेरि,
माथे धारि मुकुट, लकुट कर डारि दै
कुँवर कन्हैया मुखचंद की जुन्हैया चारु,
लोचन चकोरन की प्यासन निवारि दै।
मेरे कर मेहँदी लगी है, नंदलाल प्यारे!
लट उलझी है नकबेसर संभारि दै
हाथ हँसि दीन्हों भीति अंतर परसि प्यारी,
देखत ही छकी मति कान्हर प्रवीन की।
निकस्यो झरोखे माँझ बिगस्यो कमल सम,
ललित अंगूठी तामें चमक चुनीन की
कालिदास तैसी लाल मेहँदी के बुँदन की,
चारु नख चंदन की लाल अंगुरीन की।
कैसी छवि छाजति है छाप और छलान की सु,
कंकन चुरीन की जड़ाऊ पहुँचीन की
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