युद्ध सन्धियाँ: Difference between revisions

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Revision as of 15:35, 7 July 2011

भारतीय इतिहाक में समय-समय पर कई युद्ध सन्धियाँ हुई हैं। इन सन्धियों के द्वारा भारत की राजनीति ने न जाने कितनी ही बार एक अलग ही दिशा प्राप्त की। भारतीय रियासतों में आपस में कई युद्ध लड़े गए। देशी रियासतों की आपसी फूट भी इस हद तक बढ़ चुकी थी, कि अंग्रेज़ों ने उसका पूरा लाभ उठाया। राजपूतों, मराठों और मुसलमानों में भी कई सन्धियाँ हुईं। भारत के इतिहास में अधिकांश सन्धियों का लक्ष्य सिर्फ़ एक ही था, दिल्ली सल्तनत पर हुकूमत। अंग्रेज़ों ने ही अपनी सूझबूझ और चालाकी व कूटनीति से दिल्ली की हुकूमत प्राप्त की थी। हालाँकि उन्हें भारत में अपने पाँव जमाने के लिए काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था, फिर भी उन्होंने भारतियों की आपसी फूट का लाभ उठाते हुए इसे एक लम्बे समय तक ग़ुलाम बनाये रखा था। भारतीय इतिहास में हुई कुछ प्रमुख सन्धियों का विवरण इस प्रकार से है-

प्रमुख ऐतिहासिक सन्धियाँ

अलीनग की सन्धि - यह सन्धि 9 फ़रवरी, 1757 ई. को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई थी। इस संधि में अंग्रेजों के प्रतिनिध के रूप में रॉबर्ट क्लाइव और वाटसन शामिल थे। अमृतसर की सन्धि - यह सन्धि 28 अप्रैल, 1809 ई. में महाराजा रणजीत सिंह और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई थी। इस संधि के समय भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड मिण्टो प्रथम थे, जिन्होंने ईस्ट इण्डिया कंपनी की ओर से कम्पनी का प्रतिनिधित्व किया था।

  1. प्रथम संधि - बनारस की प्रथम सन्धि 1773 ई. में अवध के नवाब शुजाउद्दौला और अंग्रेज ईस्ट इंण्डिया कम्पनी के बीच सम्पन्न हुई।
  2. द्वितीय संधि - बनारस की द्वितीय सन्धि 1776 ई में काशी नरेश चेतसिंह और ईस्ट इण्डिया कंपनी के बीच में हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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