पर्वत प्रदेश में पावस -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions
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गिरि का गौरव गाकर झर-झर | गिरि का गौरव गाकर झर-झर | ||
मद में | मद में नस-नस उत्तेजित कर | ||
मोती की | मोती की लड़ियों सी सुन्दर | ||
झरते हैं झाग भरे निर्झर! | झरते हैं झाग भरे निर्झर! | ||
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर | गिरिवर के उर से उठ-उठ कर | ||
उच्चाकांक्षायों से तरूवर | उच्चाकांक्षायों से तरूवर | ||
है | है झाँक रहे नीरव नभ पर | ||
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर। | अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर। | ||
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धँस गए धरा में सभय शाल! | धँस गए धरा में सभय शाल! | ||
उठ रहा | उठ रहा धुआँ, जल गया ताल! | ||
-यों जलद-यान में विचर-विचर | -यों जलद-यान में विचर-विचर | ||
था इंद्र खेलता इंद्रजाल | था इंद्र खेलता इंद्रजाल |
Revision as of 10:25, 29 August 2011
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पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, |
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