पर्वत प्रदेश में पावस -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

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गिरि का गौरव गाकर झर-झर
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में लनस-नस उत्‍तेजित कर
मद में नस-नस उत्‍तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्‍दर
मोती की लड़ियों सी सुन्‍दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
झरते हैं झाग भरे निर्झर!


गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्‍चाकांक्षायों से तरूवर
उच्‍चाकांक्षायों से तरूवर
है झॉंक रहे नीरव नभ पर
है झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।


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धँस गए धरा में सभय शाल!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल
था इंद्र खेलता इंद्रजाल

Revision as of 10:25, 29 August 2011

पर्वत प्रदेश में पावस -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,

-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!

गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्‍तेजित कर
मोती की लड़ियों सी सुन्‍दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्‍चाकांक्षायों से तरूवर
है झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल

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