मोह -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

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तोड़ प्रकृति से भी माया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,


    बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
 
भूल अभी से इस जग को!
                भूल अभी से इस जग को!


तज कर तरल-तरंगों को,
तज कर तरल-तरंगों को,
इन्द्र-धनुष के रंगों को,
इन्द्र-धनुष के रंगों को,


    तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन?
तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन?
 
भूल अभी से इस जग को!
                भूल अभी से इस जग को!


कोयल का वह कोमल-बोल,
कोयल का वह कोमल-बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,


    कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन?
कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन?
 
भूल अभी से इस जग को!
                भूल अभी से इस जग को!


ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा रश्मि से उतरा जल,
सुधा रश्मि से उतरा जल,


    ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
 
भूल अभी से इस जग को!
                भूल अभी से इस जग को!


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Revision as of 11:17, 29 August 2011

मोह -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,

बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!

तज कर तरल-तरंगों को,
इन्द्र-धनुष के रंगों को,

तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन?
भूल अभी से इस जग को!

कोयल का वह कोमल-बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,

कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन?
भूल अभी से इस जग को!

ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा रश्मि से उतरा जल,

ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
भूल अभी से इस जग को!

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