काले बादल -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

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     नव मानवता में रे एका,
     नव मानवता में रे एका,
     काले बादल में कल की,
     काले बादल में कल की,
         सोने की रेखा!  
         सोने की रेखा!  
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Revision as of 12:38, 29 August 2011

काले बादल -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

सुनता हूँ, मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा!

    काले बादल जाति द्वेष के,
    काले बादल विश्‍व क्‍लेश के,
    काले बादल उठते पथ पर
    नव स्‍वतंत्रता के प्रवेश के!

सुनता आया हूँ, है देखा,
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!

    आज दिशा हैं घोर अँधेरी
    नभ में गरज रही रण भेरी,
    चमक रही चपला क्षण-क्षण पर
    झनक रही झिल्‍ली झन-झन कर!

नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका
काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा।

    काले बादल, काले बादल,
    मन भय से हो उठता चंचल!
    कौन हृदय में कहता पलपल
    मृत्‍यु आ रही साजे दलबल!

आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा!
काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा!

    मुझे मृत्‍यु की भीति नहीं है,
    पर अनीति से प्रीति नहीं है,
    यह मनुजोचित रीति नहीं है,
    जन में प्रीति प्रतीति नहीं है!


    देश जातियों का कब होगा,
    नव मानवता में रे एका,
    काले बादल में कल की,
        सोने की रेखा!

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