आजाद -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

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पूछा, 'हजरत बंदे को शक
पूछा, 'हजरत बंदे को शक
है आजाद कहां तक इंसा
है आजाद कहां तक इंसा
दुनिया में,पाबंद कहां तक?'
दुनिया में, पाबंद कहां तक?'


'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,
'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,
'अच्छा, पैर उठाओ उपर'
'अच्छा, पैर उठाओ ऊपर'
'जैस हुक्मा!' मुरीद सामने
'जैसा हुक्म!' मुरीद सामने
खड़ा हो गया एक पैर पर!
खड़ा हो गया एक पैर पर!


'ठीक , दूसरा पैर उठाओ '
'ठीक , दूसरा पैर उठाओ '
बोले हंस कर नबी फिर तुरत,
बोले हंस कर नबी फिर तुरंत,
बार बार गिर, कहा शिष्य ने
बार बार गिर, कहा शिष्य ने
'यह तो नामुमकिन है हजरत'
'यह तो नामुमकिन है हजरत'


'हो आजाद यहां तक, कहता
'हो आज़ाद यहां तक, कहता
तुमसे एक पैर उठ उपर,
तुमसे एक पैर उठ उपर,
बंधे हुए दुनिया से, कहता
बंधे हुए दुनिया से, कहता
पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -
पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -
पैगम्बसर का था यह उत्तर!  
पैगम्बर का था यह उत्तर!  
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Revision as of 12:43, 29 August 2011

आजाद -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

पैगम्बर के एक शिष्य ने
पूछा, 'हजरत बंदे को शक
है आजाद कहां तक इंसा
दुनिया में, पाबंद कहां तक?'

'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,
'अच्छा, पैर उठाओ ऊपर'
'जैसा हुक्म!' मुरीद सामने
खड़ा हो गया एक पैर पर!

'ठीक , दूसरा पैर उठाओ '
बोले हंस कर नबी फिर तुरंत,
बार बार गिर, कहा शिष्य ने
'यह तो नामुमकिन है हजरत'

'हो आज़ाद यहां तक, कहता
तुमसे एक पैर उठ उपर,
बंधे हुए दुनिया से, कहता
पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -
पैगम्बर का था यह उत्तर!




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