दो लड़के -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

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जल्दी से टीले के नीचे उधर, उतरकर
जल्दी से टीले के नीचे उधर, उतरकर
वे चुन ले जाते कूड़े से निधियाँ सुन्दर-
वे चुन ले जाते कूड़े से निधियाँ सुन्दर-
सिगरेट के खाली डिब्बे, पन्नी चमकीली,
सिगरेट के ख़ाली डिब्बे, पन्नी चमकीली,
फीतों के टुकड़े, तस्वीरें नीली पीली
फीतों के टुकड़े, तस्वीरें नीली पीली
मासिक पत्रों के कवरों की, औ' बन्दर से
मासिक पत्रों के कवरों की, औ' बन्दर से

Revision as of 12:41, 4 September 2011

दो लड़के -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

मेरे आँगन में, (टीले पर है मेरा घर)
दो छोटे-से लड़के आ जाते है अकसर!
नंगे तन, गदबदे, साँवले, सहज छबीले,
मिट्टी के मटमैले पुतले, - पर फुर्तीले।

जल्दी से टीले के नीचे उधर, उतरकर
वे चुन ले जाते कूड़े से निधियाँ सुन्दर-
सिगरेट के ख़ाली डिब्बे, पन्नी चमकीली,
फीतों के टुकड़े, तस्वीरें नीली पीली
मासिक पत्रों के कवरों की, औ' बन्दर से
किलकारी भरते हैं, खुश हो-हो अन्दर से।
दौड़ पार आँगन के फिर हो जाते ओझल
वे नाटे छः सात साल के लड़के मांसल

सुन्दर लगती नग्न देह, मोहती नयन-मन,
मानव के नाते उर में भरता अपनापन!
मानव के बालक है ये पासी के बच्चे
रोम-रोम मावन के साँचे में ढाले सच्चे!
अस्थि-मांस के इन जीवों की ही यह जग घर,
आत्मा का अधिवास न यह- वह सूक्ष्म, अनश्वर!
न्यौछावर है आत्मा नश्वर रक्त-मांस पर,
जग का अधिकारी है वह, जो है दुर्बलतर!

वह्नि, बाढ, उल्का, झंझा की भीषण भू पर
कैसे रह सकता है कोमल मनुज कलेवर?
निष्ठुर है जड़ प्रकृति, सहज भंगुर जीवित जन,
मानव को चाहिए जहाँ, मनुजोचित साधन!
क्यों न एक हों मानव-मानव सभी परस्पर
मानवता निर्माण करें जग में लोकोत्तर।
जीवन का प्रासाद उठे भू पर गौरवमय,
मानव का साम्राज्य बने, मानव-हित निश्चय।

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