अनुभूति -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 38: Line 38:
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
तुम आती हो,
तुम आती हो,
अंतस्थल में
अंत:स्थल में
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।


Line 44: Line 44:
कह पाते मर्म-कथा न वचन,
कह पाते मर्म-कथा न वचन,
तुम आती हो,
तुम आती हो,
तंद्रिल मन में
तंद्रिल मन में,
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।


Line 50: Line 50:
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
तुम आती हो,
तुम आती हो,
आनंद-शिखर
आनंद-शिखर,
प्राणों में ज्वार उठाती हो।
प्राणों में ज्वार उठाती हो।


Line 56: Line 56:
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
तुम आती हो,
तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
जीवन-पथ पर,
सौंदर्य-रहस बरसाती हो।
सौंदर्य-रस बरसाती हो।


जगता छाया-वन में मर्मर,
जगता छाया-वन में मर्मर,
कंप उठती रुध्द स्पृहा थर-थर,
कंप उठती रुद्ध स्पृहा थर-थर,
तुम आती हो,
तुम आती हो,
उर तंत्री में
उर तंत्री में,
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।   
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।   
</poem>
</poem>

Revision as of 05:43, 14 December 2011

अनुभूति -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

तुम आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो।

बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम,
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
तुम आती हो,
अंत:स्थल में
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।

अपलक रह जाते मनोनयन
कह पाते मर्म-कथा न वचन,
तुम आती हो,
तंद्रिल मन में,
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।

अभिमान अश्रु बनता झर-झर,
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
तुम आती हो,
आनंद-शिखर,
प्राणों में ज्वार उठाती हो।

स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम,
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
तुम आती हो,
जीवन-पथ पर,
सौंदर्य-रस बरसाती हो।

जगता छाया-वन में मर्मर,
कंप उठती रुद्ध स्पृहा थर-थर,
तुम आती हो,
उर तंत्री में,
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।

संबंधित लेख