आत्मा का चिर-धन -सुमित्रानंदन पंत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Sumitranandan-Pant...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
Line 10: Line 10:
|मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977
|मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]]
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]]
|मुख्य रचनाएँ=वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि  
|मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -पंत|वीणा]], [[पल्लव -पंत|पल्लव]], चिदंबरा, [[युगवाणी -पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन -पंत|लोकायतन]], हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, [[युगपथ -पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि  
|यू-ट्यूब लिंक=
|यू-ट्यूब लिंक=
|शीर्षक 1=
|शीर्षक 1=
Line 32: Line 32:
<poem>
<poem>
क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन !
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन!


     प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
     प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
Line 40: Line 40:
            
            
निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
मैं हुँ परतिपल उन्मन, उन्मन ।
मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।


     मैं प्रेमी उच्चाद्रशों का,
     मैं प्रेमी उच्चादर्शों का,
     संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,
     संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,
     जीवन के हर्ष-विमर्शों का:
     जीवन के हर्ष-विमर्शों का,


    
    
लगता अपुर्ण मानव जीवन,
लगता अपूर्ण मानव जीवन,
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन !
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन!


     जग-जीवन में उल्लास मुझे,
     जग-जीवन में उल्लास मुझे,
Line 56: Line 56:
    
    
चाहिए विश्व को नवजीवन,
चाहिए विश्व को नवजीवन,
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन ।
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन।


</poem>
</poem>

Latest revision as of 12:41, 15 December 2011

आत्मा का चिर-धन -सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन!

    प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
    त्रिण, तरु, पशु, पक्षी, नर, सुरवर,
    सुन्दर अनादि शुभ सृष्टि अमर;

           
निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।

    मैं प्रेमी उच्चादर्शों का,
    संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,
    जीवन के हर्ष-विमर्शों का,

   
लगता अपूर्ण मानव जीवन,
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन!

    जग-जीवन में उल्लास मुझे,
    नव-आशा, नव अभिलाष मुझे,
    ईश्वर पर चिर विश्वास मुझे;

   
चाहिए विश्व को नवजीवन,
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन।

संबंधित लेख